Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] हिदिविहत्तीए डिदिसंतकम्मट्ठाणपरूवणा
३३५ ६६४०. संपहि पडिवक्खबंधगद्धाओ अस्सिदूण अब्भवसिद्धियपाओग्गट्ठाणाणमप्पाबहुअं वत्तइस्सामो । तं जहा-सव्वत्थोवाणि सोलसकसाय-भय-दुगुंछाणं हिदिसंबकम्मट्ठाणाणि । केत्तियमेत्ताणि ? रूवूणेईदियजहण्णहिदीए परिहीणचत्तालीस सागरोवमकोडाकोडीमेत्ताणि । तेसिं पमाणं संदिडीए बारहोत्तरपंचसदमिदि घेत्तव्वं ५१२। णqसयवेदहिदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । केत्तियमेत्तेण ? इत्थि-पुरिसवेदबंधगद्धामेत्तेण ५२२ । अरदि-सोगडिदिसंतकम्मट्ठा० विसे० । के०मेत्तो विसेसो १ इत्थिपुरिसवेदबंधगद्धाहि ऊणहस्स-रदिबंधगद्धामेत्तो ५४४। हस्स-रदीणं हिदिसंतकम्महा० विसेसा० ६४० । के०मेत्तेण ? हस्स-रदिबंधगद्धाए ऊणअरदि-सोगबंधगद्धामेत्तेण । इत्थिवेदसंतकम्महाणाणि विसेसाहियाणि ६६४ । केत्तियमेत्तेण ? अरदि-सोगबंधगद्धाए ऊणपुरिस-णqसयवेदबंधगद्धामेत्तेण । पुरिस वेदसंतकम्महाणाणि विसेसाहियाणि ६७०। केत्तियमेत्तेण ? पुरिस वेदबंधगद्धाए ऊणइत्यिवेदबंधगद्धामेत्तेण । बंधगद्धाओ खवणद्धाओ च अस्सिदण हाणाणमप्पाबहुअपरूवणा किम ण कीरदे ? ण, णोकसायबंधगद्धाणं खवणद्धाणं च अंतरविसयअवगमाभावादो।
६ ६४०. अब प्रतिपक्षभूत बन्धकालोंकी अपेक्षा अभव्योंके योग्य स्थानोंके अल्पबहुत्वका कथन करते हैं । जो इस प्रकार है-सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके स्थितिसत्कर्मस्थान सबसे थोड़े हैं। वे कितने हैं ? एकेन्द्रियकी एक कम जघन्य स्थितिसे हीन चालीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण हैं। उनका प्रमाण अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा पाँच सौ बारह ५१२ लेना चाहिए। इनसे नपुंसकवेदके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं ? स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धकालप्रमाण अधिक हैं। अंकसंदृष्टिसे उनका प्रमाण ५२२ होता है। इनसे अरति और शोकके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं। कितने विशेष अधिक हैं ? हास्य और रतिके बन्धकालमेंसे स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धकालको घटा देनेपर जितना शेष रहे तत्प्रमाण विशेष अधिक हैं । अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा इनका प्रमाण ५४४ होता है। इनसे हास्य और रतिके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं। अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा इनका प्रमाण ६४० होता है । वे कितने अधिक हैं ? अरति और शोकके बन्धकालमेंसे हास्य और रतिके बन्धकालको घटा देनेपर जितना शेष रहे तत्प्रमाण विशेष अधिक हैं। इनसे स्त्रीवेदके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं । अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा इनका प्रमाण ६६४ होता है। वे कितने अधिक हैं ? पुरुषवेद और नपुंसकवेदके बन्धकालमें से अरति और शोकके बन्धकालके घटा देनेपर जितना शेष रहे उतने अधिक हैं । इनसे पुरुषवेदके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं। अंकसंदृष्टिको अपेक्षा इनका प्रमाण ६७० होता है। कितने अधिक हैं ? स्त्रीवेदके बन्धकालमेंसे पुरुषवेदका बन्धकाल घटा देनेपर जितना शेष रहे तत्प्रमाण विशेष अधिक हैं।
शंका—बन्धफाल और क्षपणाकालकी अपेक्षा सत्कर्मस्थानोंके अल्पबहुत्वका कथन किसलिये नहीं किया ?
समाधान नहीं, क्योंकि नोकषायविषयक बन्धकाल और क्षपणाकालके अन्तरका ज्ञान नहीं होनेसे नहीं किया।
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