Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढोए अप्पाबहुअं
३१३ असंखे भागहाणिक० असंखे गुणा । . ५९७. कम्मइय०जोगीसु छब्बीसं पयडीणं सव्वत्थोवा संखे०गुणहाणिक० । संखे०भागहाणिक० संखेगुणा । संखे०गुणवडि० असंखे गुणा। संख०भागवहि० संखेगुणा। असंखे०भागवढि० अणंतगणा । अवढि० असंखे०गुणा। असंखे०भागहा० संखे गुणा । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमोरालियमिस्स भंगो । एवमणाहारीणं ।
६५९८. आहार-आहारमिस्स० अट्ठावीसं पयडीणं णत्थि अप्पाबहुअं, एगपदत्तादो । एवमकसाय-जहाक्खाद०-सासणाणं ।
६५९९. वेदाणुवादेण इत्थि-पुरिसवेदएसु मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक०सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं पंचिंदियभंगो। णउंसय० अठ्ठावीसं पयडीणं मूलोघभंगो । अवगदवेदएसु मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अहकसाय०-इत्थि-णqसयवेदाणं सव्वत्थोवा संखे०भागहाणिकम्मंसिया। असंखे भागहाणिक० संखे०गुणा। एवं सत्तणोकसायतिसंजलणाणं । णवरि संखे०गणहाणी जाणिय वत्तव्वा । लोभसंजलणस्स सव्वत्थोवा संखेन्गुणहाणि। संखे०भागहाणि० संखे०गुणा। असंखे०भागहाणि० संखे०गुणा । कसायाणुवादेण चदुण्हं कसायाणं मूलोधभंगो।।
६००. णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणीसु मिच्छत्त-सोलसक०हैं या संख्यातगणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीवअसंख् यातगणे हैं।
६५९७. कार्मणकाययोगियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि कर्मवाले जीव असंख्यातगणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव संख्यातगणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग औदारिकमिश्रकाययोगियोंके समान है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंमें जानना चाहिए।
६५९८. आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि यहां असंख्यातभागहानिरूप केवल एक पद है। इसी प्रकार अकषायी, यथाख्यातसंयत और सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें जानना चाहिये।
६५९९. वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग पंचेन्द्रियोंके समान है। नपुंसकवेदियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंका भंग मूलोघके समान है। अपगतवेदवाले जीवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, आठ कषाय, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी अपेक्षा संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार सात नोकषाय और तीन संज्वलनोंकी अपेक्षा जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणहानिका कथन जानकर करना चाहिये। लोभसंज्वलनकी अपेक्षा संख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। कषायमार्गणाके अनुवादसे चारों कषायोंका भंग मूलोघके समान है।
६००. ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें मिथ्यात्व, .सोलह
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