Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 349
________________ ३२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ मुत्तरसुत्तं भणदि 8 दसणमोहणीयक्खवयस्स अणियट्टिअद्धा संखेजगुणा । ६६२१. चारित्तमोहउवसामयस्स अपव्वकरणद्धादो दंसणमोहक्खवयस्स अणियट्टिअद्धा संखेगुणा। को गुणगारो ? तप्पाओग्गसंखेजरूवाणि । कुदो, साभावियादो। 8 अपुवकरणद्धा संखेजगुणा । ६ ६२२. दंसणमोहक्खवयस्से ति पुवसुत्तादो अणुवट्टदे। तेण दंसणमोहक्खवयस्स अणियट्टिअद्धादो तस्सेव अपुव्वकरणद्धा संखेजगुणा त्ति वत्तव्वं । संपहि अणंताणुबंधिचउक्कस्स हिदिबंधट्ठाणाणं साहणपरूवणहमुत्तरसुत्तं भणदि * अणंताणुबंधीणं विसंजोएंतस्स अणियटिश्रद्धा संखेजगुणा। ६२३. एत्थ करणसद्दो पुव्वुत्तरसुत्तेहिंतो अणुवट्टावेदव्वो, अण्णहा अभिहेयविसयबोहाणुप्पत्तीए । सेसं सुगमं । * अपुवकरणद्धा सखेजगुणा। ६६२४. अणंताणुबंधोणं विसंजोएंतस्से त्ति अणुवट्टदे । तेण तस्स अणियट्टिअद्धादो तस्सेव अपुव्वकरणद्धा संखेजगुणा त्ति वत्तव्वं । जदि वि अपुव्वहिदिसंतवाणाणं आगेका सूत्र कहते हैं __ दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है। ___६२१. चारित्रमोहकी उपशमना करनेवाले जीवके अपूर्वकरणके कालसे दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है। गुणकारका प्रमाण क्या है ? उसके योग्य संख्यात अङ्क गुणकारका प्रमाण है, क्योंकि ऐसा स्वभाव है। इससे अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणा है। ६६२२. इस सूत्रमें 'दंसणमोहक्खवयस्स' इस पदकी पूर्व सूत्रसे अनुवृत्ति होती है। अतः दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणके कालसे उसीके अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणा है ऐसा कहना चाहिये । अब अनन्तानुबन्धीचतुष्कके स्थितिबन्धस्थानोंकी सिद्धिका कथन करनेके आगेका सत्र कहते हैं। * इससे अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है। ६६२३. यहाँ पर करण शब्दको अनुवृत्ति पहलेके और आगेके सूत्रसे कर लेनी चाहिये, अन्यथा अभिप्रेत अर्थका ज्ञान न हो सकेगा। शेष कथन सुगम है। ॐ इससे अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणा है। ६ ६२४. इस सत्रमें 'अणंताणुबंधोणं विसंजोएंतस्स' इस पदकी अनुवृत्ति होती है, अतः अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी विसंयोजना करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणके कालसे उसीके अपूर्व करणका काल संख्यातगुणा है ऐसा अर्थ यहाँ कहना चाहिये । यद्यपि आगेके दो सूत्र अपूर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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