Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 350
________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए हिदिसंतकम्मट्ठाणपरूवणा ३२९ उवरिमवेपदाणि करणं ण होति तो वि अद्धामाहप्पजाणावण परूवेदि उवरिमसुत्तं * दसणमोहणीयउवसामयस्स अणियट्टिप्रद्धा स खेजगणा। ६६२५. अणादिओ सादिओ वा मिच्छादिही पढमसम्मत्तं पडिवजमाणो दंसणमोहणीयउवसामओ त्ति भण्णदि, उवसमसेढिसमारुहणहं दंसणतियमुवसातवेदगसम्माही संजदो वा। तस्स मोहणीयउवसामयस्स जा अणियट्टिकरणद्धा संखे०गुणा । को गुणगारो ? संखेजरूवाणि । * अपुव्वकरणद्धा स खेज्जगुणा । ६६२६. दसणमोहणीयउवसामयस्से त्ति अणुवट्टदे तेण तस्स अणियट्टिअद्धादो तस्सेव अपुव्वकरणद्धा संखेजगुणा त्ति सिद्धं । एवमप्पाबहुअसाहणेण सह परूवणा समत्ता। * एतो हिदिसतकम्महाणाणमप्पाबहुअं। ६६२७. एत्तो परूवणादो उवरि पुव्वं परूविदहिदिसंतकम्महाणाणं थोवबहुतं भणिस्सामो ति आइरियपइजावयणमेयं । ण चेदं णिप्फलं, मंदबुद्धिविणेयजणाणुग्गहहत्तादो। ® सव्वत्थोवा भट्टण्हं कसायाणं हिदिस तकम्माहाणाणि । स्थितिसत्त्वस्थानोंके कारण नहीं होते तो भी अद्धाके माहात्म्यका जान करानेके लिये भागेका सत्र कहते हैं। ___इससे दर्शनमोहनीयकी उपशमना करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है। ६ ६२५. अनादि मिथ्यादृष्टि या सादि मिथ्यादृष्टि जीव प्रथम सम्यक्त्वको प्राप्त होता हुआ दर्शनमोहनीयका उपशामक कहा जाता है। या उपशमश्रेणी पर आरोहण करने के लिये तीन दर्शनमोहनीयकी उपशमना करनेवाला वेदकसम्यग्दृष्टि संयत जीव दर्शनमोहनीयका उपशामक कहा जाता है। मोहनीयकी उपशमना करनेवाले उस जीवके जो अनिवृत्तिकरणका काल है वह संख्यातगुणा है। गुणाकारका प्रमाण क्या है ? संख्यात अङ्क गुणकारका प्रमाण है। * इससे अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणा है। ६६२६. यहाँ 'दंसणमोहणीयउवसामयस्स' इस पदकी अनुवृत्ति होती है। अतः इस दर्शनमोहनीयकी उपशामना करनेवाले जीवके अवृित्तिकरणके कालसे इसीके अपर्वकरणका काल संख्यातगुणा है यह सिद्ध हुआ। इस प्रकार अल्पबहुत्वकी सिद्धि के साथ प्ररूपणानुगम समाप्त हुआ। . * अब प्ररूपणाके आगे स्थितिसत्कर्मस्थानोंके अल्पबहुत्वका अधिकार है। ६६२७. यहाँसे अर्थात् प्ररूपणानुगमके बाद पहले कहे गये स्थितिसत्कर्मस्थानोंके अल्पबहुत्वको कहेंगे इसप्रकार यह यतिवृषभ आचार्यका प्रतिज्ञावचन है। और यह निष्फळ नहीं है, क्योंकि इसका फल मन्दबुद्धि शिष्योंका अनुग्रह करना है। * आठ कषायोंके स्थितिसत्कर्मस्थान सबसे थोड़े हैं।... ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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