Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 337
________________ ३१६ ___ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ संखे०गुणहाणिक० संखे०गुणा । संखे०भागहा० असंखे०गुणा । असंखे०भागहा० असंखे०गुणा । अणंताणु०चउक० सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणि । संखेगुणहा० संखे०गुणा । संखे०भागहाणि० संखे०गुणा । असंखे०भागहाणि. असंखे०गुणा । एक्कवीसपयडीणं सव्वत्थोवा संखे भागहाणि । असंखे०भागहाणि० असंखेजगुणा । असंजदेसु दंसणतिय-अणंताणुवंधिचउक्काणं मूलोघभंगो। एकवीसपयडीणं पि मूलोघभंगो चेव । णवरि असंखेजगुणहाणो णस्थि ।। ६६०३. दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणीसु अहावीसं पयडीणं तसपजत्तभंगो । अचक्खुदंसणीणं मूलोधभंगो। ६६०४. लेस्साणुवादेण किण्ह-णील-काउलेस्सिय० अठ्ठावीसं पयडीणं मूलोघभंगो । णवरि वावीसं पयडीणमसंखेजगुणहाणी णत्थि । तेउ-पम्मलेस्सिय० मिच्छत्त० सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणि । संखेगुणवडि०-संखे०गुणहाणि० दो वि सरिसा असंखे गुणा । संखे०भागववि-हाणि० दो वि सरिसा संखेन्गुणा । असंखे०भागवढि० असंखेगुणा । अवढि० असंखेगुणा । असंखे०भागहाणि० संखे गुणा । एवमेकवीसपयडीणं । णवरि असंखे०गुणहाणी णत्थि । अणंताणुबंधीणं सव्वत्थोवा सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे है । इनसे सख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असख्यातगणे है । इनसे असख्यातभागहानिकम वाले जीव असंख्यातगुणे है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्म वाले जीव सबसे थोड़े है। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुण है। इनसे सख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे है । इक्कीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा संख्यातभागहानिकर्मवाल जीव सबसे थोड़े है। इनसे असख्यातभागहानिकर्मवाल जीव असंख्यातगुणे है । असयतोंमें तीन दर्शनमोहनीय और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग ओघके समान है। इक्कीस प्रकृतियोंका भी भंग मूलोघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ असख्यातगुणहानि नहीं है। ६६०३. दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनवालोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंका भंग त्रसपर्याप्तकोंके समान है। तथा अचक्षुदर्शनवालोंका भंग मूलोघके समान है। ६६०४. लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्ण, नील और कापोतले श्यावाले जीवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंका भंग मूलोघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ बाईस प्रकृतियोंकी असख्यातगुणहानि नहीं है। पीत और पद्मल श्यावालोंमें मिथ्यात्वकी अपेक्षा असख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे सख्यातगुणवृद्धि और सख्यातगुणहानिकर्मवाले ये दोनों समान होते हुये भी असख्यातगुणे है । इनसे सख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिकर्मवाल ये दोनों समान होते हुए भी संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धिकम वाल जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुण हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार इक्कीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ असंख्यातगुणहानि नहीं है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा अवक्तव्यकर्मवाले जीव सबसे थोड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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