Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 333
________________ ३१२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ छब्बीसं पयडीणं दट्ठव्वं । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणिक० । संखे गुणहाणिक० असंखे०गुणा [ संखे०भागहाणिक० उच्चारणाए अहिप्पारण असंखे०गुणा जइवसहगुरूवएसेण संखेजगुणा) असंखे०भागहाणिक० असंखे०गुणा । ५९५. वउव्वियकायजोगीसु मिच्छत्त-चारसक०-णवणोक० सव्वत्थोवा संखे०गणहाणि-संखेगणवडिकम्मंसिया दो वि सरिसा । संखे०भागवडि-संखे०भागहाणिक दो वि सरिसा संखेगुणा । असंखे०भागवड्ढि० असंखे०गुणा। अवहि० असंखे०गणा। असंखे भागहाणि० संखेगुणा। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं मूलोधभंगो। अणंताणुबंधोणं सव्वत्थोवा अवत्तव्व० । असंखेगणहाणि० संखे०गणा। संखे०गुणवहि० संखेगुणहाणि दो वि असंखे०गुणा । उवरि मिच्छत्तभंगो।। ५९६. वेउव्वियमिस्स० छव्वीसं पयडीणं सव्वत्थोवा संखेन्गुणहाणि । संखे०गुणवड्डि विसेसाहिया। संखे०भागवड्ढि०-संखे भागहाणि० दो वि सरिसा संखे०गुणा । असंखे०भागवड्डि० असंखे०गुणा । अवढि० असंखे०गुणा। असंखे०भागहाणि० संखे०गुणा । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा असंखेगुणहाणिक० । संखे०गुणहाणिक० असंखे०गुणा। संखे भागहाणिक० असंखे०गुणा संखे०गुणा वा । छब्बीस प्रकृतियोंका जानना चाहिए। सम्यवत्व और सम्यग्निथ्यात्वकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव उच्चारणाके अभिप्रायानुसार असंख्यातगुणे हैं। पर यतिवृषभगुरुके उपदेशानुसार संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। ६५६५. वैक्रियिककाययोगियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा संख्यातगुणहानि और संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले ये दोनों समान होते हुए भी सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिकर्मवाले ये दोनों समान होते हुए भी संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मूलोघके समान है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा अवक्तव्यकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव ये दोनों समान होते हुए भी असंख्यातगुणे हैं। ऊपर मिथ्यात्वके समान भंग है। ६५९६. वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा संख्यातगणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिकर्मवाले ये दोनों समान होते हुए भी संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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