Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 331
________________ ३१० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ संखे०गुणवड्डिक० असंखे०गुणा। संखे भागवड्डिक० संखे गुणा। संखे गुणहाणिकम्मंसिया संखे०गुणा। संखे०भागहाणिक० असंखे०गुणा। जइवसहाइरियउवएसेण संखे०गुणा । अवत्तब्वकम्मंसिया असंखे गुणा। असंखे०भागहाणिक० असंखे०गुणा। ६५९२. कायाणुवादेण सव्वचउक्काएसु मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोकसाय० सव्वत्थोवा संखे०गुणहाणिक० । संखे०भागहाणिक० संखेगुणा । असंखे० भागवड्डिक० असंखे गुणा। अवट्ठिदक० असंखे०गुणा। असंखे०भागहाणिक० संखेगुणा। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं एइंदियभंगो। एवं बादरवणप्फदि०पत्तेयसरीराणं। सव्ववणप्फदि-सव्वणिगोदाणमेइंदियभंगो। तसकाइय-तसका०पज्जत्तएसु पंचिंदियभंगो । तसअपजत्तएसु पंचिंदियअपजत्तभंगो। ___५९३. जोगाणुबादेण पंचमण-पंचवचिजोगीसु मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक०सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणिकम्मंसिया। उवरि विदियपुढविभंगो। अथवा सव्वत्थोवा असंखेगणहाणिक० । संखे गुणवड्डिक० असंखे०गुणा। संखे०गुणहाणिक० विसेसाहिया खवगसेढीए संखे०गुणहाणिं कुणमाणजीवेहि । संखे०भागवडिक० संखेगुणा। संखे०भागहाणिक० विसेसा० खवगसेढीए संखे०भाग असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। पर यतिवृषभ आचार्यके उपदेशसे संख्यातगुणे हैं । इनसे अवक्तव्यकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। . ६५९२. कायमार्गणाके अनुवादसे पृथिवी आदि चार कायवालोंके सब भेदोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा संख्यातगणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव असंर यातगुणे हैं । इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगणे हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग एकेन्द्रियोंके समान है। इसी प्रकार बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके जानना चाहिये। सब वनस्पतिकायिक और सब निगोद जीवोंका भंग एकेन्द्रियोंके समान है। त्रसकायिक और त्रसकायिकपर्याप्त जीवोंका भंग पंचेन्द्रियोंके समान है । तथा त्रसअपर्याप्तकोंका भंग पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान है। ६५९३. योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मबाले जीव सबसे थोड़े हैं। इसके आगे दूसरी पृथिवीके समान भंग है। अथवा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव क्षपकश्रेणीमें मात्र संख्यातगुणहानिको करनेवाले जीवोंकी अपेक्षा विशेष अधिक हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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