Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
३०८
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ संखे०गुणवड्डिक० असंखे०गुणा । संखे०भागवड्डिक० संखे०गुणा । संखे०भागहाणिक० असंखे०गुणा। अवत्तव्व० असंखे०गुणा । असंखे०भागहा०क० असंखे०गुणा । एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि वत्तव्वं । णवरि असंखेगुणहाणि-संखे०गुणहाणिक० बे वि सरिसा कायव्वा। अणंताणु० चउक० सव्वत्थोवा अवत्तव्व०। असंखे०गुणहाणि० संखेगुणा । संखेगुणहाणि० संखे०गुणा । संखे०भागहाणिक संखे०गुणा। असंखे०भागहाणि० असंखे गुणा। अणुद्दिसादि जाव अवराइदो त्ति मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक. आणदभंगो। सम्मामि० मिच्छत्तभंगो । सम्मत्त० सव्वत्थोवा संखेगुणहाणि । संखे०भागहाणि० असंखे गुणा । असंखे०भागहाणि. असंखे गुणा । अणंताणु०चउक्क० आणदभंगो। णवरि अवत्तव्वं णत्थि । एवं सव्व? । णवरि संखे०गुणं कायव्वं ।।
६ ५९०. इंदियाणुवादेण एइंदिएसु मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० सव्वत्थोवा संखे गुणहाणिकम्मंसिया।संखे०भागहाणिक० संखे गुणा। असंखे०भागवड्डिक० अणंतगुणा । अवट्टिदक० असंखे०गुणा। असंखे०भागहाणिक० संखेजगुणा । सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा असंखेगुणहाणिक० । संखे गुणहाणिक. असंखे०
गुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वका भी कथन करना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और संख्यातगणहानिकर्मवाले इन दोनोंको भी समान करना चाहिये। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपेक्षा अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे असंख्यातगुणहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भंग आनत कल्पके समान है। सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्वके समान है। सम्यक्त्वकी अपेक्षा संख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग आनत कल्पके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि वहाँ अवक्तव्य पद नहीं है। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें सर्वत्र संख्यातगुणा करना चाहिये।
६५९०. इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मबाले जीव संख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org