Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती३. वेउन्वियकायजोगि-असंजद-पंचलेस्सा ति। णवरि असंजद-तेउ-पम्म० मिच्छ० असंखेज्जगुणहाणी ओघं।
६२६९. पंचिं०तिरि०अपज्ज. अट्ठावीसं पयडीणं सव्वपदा कस्स ? अण्णद० । एवं मणुसअपज्ज०-सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय अपज्ज०-सव्वपंचकाय-तसअपज्ज०-तिण्णिअण्णाण-अभवसि० मिच्छादि० असण्णि ति । णवरि अभव० छव्वीसं पयडिआलावो कायब्वो।
६ २७०. आणदादि जावणवगेवज्जोत्ति मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखज्जभागहाणी संखेज्जमागहाणी कस्स ? अण्णद० सम्माइट्ठिस्स मिच्छाइहिस्स वा । अणं. ताणु०चउक० एवं चेव । णवरि संखेज्जगुणहाणी असंखेज्जगुणहाणी च कस्स १ सम्माइटिस्स । अवत्तव्वमोघं । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं चत्तारि वड्डी अवत्तव्वं कस्स ? अण्णद० पढमसमयसम्माइद्विस्स । तिण्णि हाणी कस्स ? सम्माइद्विस्स मिच्छाइद्विस्स वा । असंखेज्जगुणहाणी कस्स ? अण्णद० मिच्छाइहिस्स । णवरि सम्मामिच्छत्तस्स संखेज्जगुणहाणी मिच्छाइद्विस्स चेव ।
६ २७१. अणुदिसादि जाव सव्वट्ठसिद्धि त्ति अट्ठावीसं पयडीणं सव्वपदा कस्स ? सम्माइटिस्स । एवमाहार०-आहारमिस्स०-अवगद०-अकसा०-आभिणि-सुद०-ओहि.. मणपज्ज०-संजद०-सामाइय-छेदो०-परिहार०-सुहुमसांपराय-जहाक्खाद-संजदासंजद०
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पाँच लेश्यवाले जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंयत, पीतलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि ओघके समान है।
६२६६. पंचेन्द्रिय तिथंच अपर्याप्तकोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतरके होते हैं। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, सब पाँचों काय, त्रस अपर्याप्त, तीनों अज्ञानी, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अभव्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंका आलाप कहना चाहिये ।
६२७०. आनत कल्पसे लेकर नौ अवेयकतकके देवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानि किसके होती हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टिके होती हैं। अनन्तानुबन्धी चतुष्कका कथन इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि किसके होती हैं ? सम्यग्दृष्टिके होती हैं। प्रवक्तव्यका भंग ओघके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धियाँ और अवक्तव्य किसके होते हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें होते हैं। तीन हानियाँ किसके होती हैं ? सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टिके होती हैं। असंख्यातगुणहानि किसके होती है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणहानि मिथ्यादृष्टिके ही होती है।
६२७१, अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पद किसके होते हैं ? सम्यग्दृष्टिके होते हैं। इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, आभिनिबोधिकज्ञानी,श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी,मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, संयतासंयत,
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