Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] ट्ठिदिविहत्तीए वड्ढीए अप्पाबहुअं
२८३ संखे०गुणवड्डी होदि । एवं होदि त्ति कादूण संखे०भागवड्डिविहत्तिएहितो संखे गुणवड्डिविहत्तिया संखे०गुणा त्ति ? णएस दोसो, बीइंदिय-तोइंदिय-चउरिंदिय-पंचिंदिए हितो णिप्पिडिदूण तसकाइएसु संचरंतजीवे पेक्खिदृण एइंदिएसु पविट्ठजीवाणमसंखे०गुणत्तादो। ण च एइंदिए हितो आगंतूण णिप्पिदिदपडिभागेण सग-सगजादीसु उप्पजमाणजीवाणं मज्झे संखेजभावड्डिविहत्तिएहितो संखे०गुणवड्डिविहत्तियाणं बहुत्तमत्थि, संखे०भागवड्डिविसयहिदीहि सह णिप्पिदमाणएइंदिए पेक्खिदूण संखे० गुणवड्डिविसयहिदीहि सह णिप्पिदमाणएइंदियाणं संखेजगुणहीणत्तादो । बीइंदियाणं संखे०भागवड्डिविसओ देसूणपणुवीससागरोवमाणमद्धमेत्तहिदीओ। ताओ चेव एगसागरोवमेण ऊणाओ संखे गुणवड्डिविसओ । तीइंदियाणं संखे०भागवड्डिविसओ देसूणपंचाससागरोवमाणमद्धमेत्तद्विदीओ। ताओ चेव एगसागरोवमेण्णाओ तेसिं संखे गुणवड्डिविसओ। चउरिंदियाणं संखेजभागवड्डिविसओ। देसूणसागरोवमसदस्स अद्धमेत्तहिदीओ। ताओ चेव एगसागरोवमेणूणाओ तेसिं संखेजगुणवड्डिविसओ। असण्णिपंचिंदियाणं संखेजभागवड्डिविसओ देसूणसागरोवमसहस्सस्स अद्धमेत्तद्विदीओ । ताओ चेव एगसागरोवमेणूणाओ तेसिं संखे गुणवड्डिविसओ। सण्णिपंचिंदयाणं संखेजभागवडिविसओ अंतोकोडाकोडिसारोवमाणमद्धमेत्तहिदीओ । ताओ चेव एगसागरोवमेणूणाओ तेसिं संखेज गुणवड्डिविसओ । एवं वुत्तकमेण वृद्धियाँ होती हैं ऐसा समझकर संख्यातभागवृद्धिवाले जीवोंसे संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे होने चाहिये ?
. समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियोंमेंसे निकलकर त्रसकायिकोंमें संचार करनेवाले जीवोंको देखते हुए एकेन्द्रियोंमें प्रवेश करनेवाले जीव असंख्यातगुणे होते हैं। और एकेन्द्रियोंमेंसे आकर प्राप्त हुए प्रतिभागके अनुसार अपनीअपनी जातियों में उत्पन्न होनेवाले जीवोंमें संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवालोंसे संख्यातगुणवृद्धिविभक्तिवाले जीव बहुत नहीं हैं, क्योंकि संख्यातभागवृद्धिकी विषयभूत स्थितियोंके साथ निकलनेवाले एकेन्द्रियोंको देखते हुए संख्यातगुणवृद्धि की विषयभूत स्थितियोंके साथ निकलनेवाले एकेन्द्रिय जीव संख्यातगुणे हीन होते हैं।
शंका-द्वीन्द्रियोंके संख्यातभागवृद्धि की विषयभूत कुछ कम पञ्चीस सागरकी आधी स्थितियाँ हैं उनके वे ही एक सागर कम संख्यातगुणवृद्धिकी विषय हैं। तीन इन्दियोंके संख्यातभागवृद्धिकी विषय कुछ कम पचास सागर की आधो स्थितियाँ हैं। वे ही एक सागर कम होकर उनके संख्यातगुणवृद्धि की विषय होती हैं। चौइन्द्रियोंके संख्यातभागबृद्धिकी विषय कुछ कम सौ सागरकी आधी स्थितियाँ हैं। वे ही एक सागर कम होकर उनके संख्यातगुणवृद्धिको विषय हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रियोंके संख्यातभागवृद्धिकी विषय कुछ कम एक हजार सागरकी आधी स्थितियाँ हैं। वे ही एक सागर कम होकर उनके संख्यातगुणवृद्धिकी विषय हैं । संज्ञी पंचेन्द्रियोंके संख्यातभागवृद्धिकी विषय अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरकी आधी स्थितियाँ हैं।
१. आ० प्रतौ -णूणाश्रो संखेज्ज- इति पाठः ।
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