Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] ट्ठिदिविहत्तीए वड्ढीए अप्पाबहुअ
२८७ तीइंदिएसु उप्पण्णाणं पढमसमए संखे०भागवड्डी चेव ण संखे०गुणवड्डि त्ति सिद्धं । किं च बेइंदियपज्जत्तो सुहमेइंदियपज्जत्तसंजुत्तं बंधमाणो वेइंदियउकस्सहिदि बंधिदण पडिहग्गो होदूण तेइंदियसंजुत्तमंतोमुहुत्तं बंधिय पुणो कालं काढूण तेइंदिएसुप्पण्णपढमसमए वि संखे०भागवड्डी होदि त्ति संखे०गुणवड्डी चेव होदि त्ति एयंतग्गाहमोसारिय णियमेण संखेजभागवड्डी चेव होदि त्ति घेत्तव्वं ।
असंखेजभागवडिकम्मंसिया अणंतगुणा । ६५६७. कुदो ? तसरासीए असंखे०भागमेत्त-संखेजभागवड्डिविहत्तीए पेक्खिदूण सव्वजीवरासीए असंखे भागमेत्तअसंखे०भागवड्डिविहत्तियाणमणंतगुणत्तं पडि विरोहाभावादो। असंखे०भागवड्डिविहत्तिया सव्वजीवरासीए असंखे०भागो त्ति कुदो णव्वदे ? दुसमयसंचिदत्तादो।
* अवहिदकम्मंसिया असंखेजगुणा ।
५६८. कुदो अंतोमुहुत्तसंचिदत्तादो । एई दियरासीए संखेजदिभागत्तादो वा । संखे०भागतं कुदो णव्वदे ? एई दियाणं वड्डि-हाणि-अवडिदद्धाणं समासं कादृण अंतोमुहुत्तमेत्तअवढिदद्धाए ओवट्टिय लद्धसंखे०रूवेहि सव्वजीवरासिम्हि ओवट्टिदाए अवहिद
अतः जो दोइन्द्रिय तीनइन्द्रियोंमें उत्पन्न होते हैं उनके प्रथम समयमें संख्यातभागवृद्धि हो होती है संख्यातगुणवृद्धि नहीं होती यह सिद्ध हुआ। दूसरे जो दोइन्द्रिय पर्याप्त जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तसंयुक्त बन्ध करता हुआ दोइन्द्रियोंकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर और प्रतिभग्न होकर अन्तमुहूर्त तक तीनइन्द्रियसंयुक्त बन्ध करके पुनः मरकर तेइन्द्रियोंमें उत्पन्न होता है उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें भी संख्यातभागवृद्धि होती है । अतः सं यातगुणवृद्धि ही होती है ऐसे एकान्त आग्रहको छोड़कर नियमसे संख्यातभागवृद्धि होती है ऐसा ग्रहण करना चाहिये।
ॐ असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव अनन्तगुणे हैं।
६५६७. क्योंकि त्रसराशिके असंख्यातवें भागप्रमाण संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवाले जीवोंको देखते हुए सब जीवराशिके असंख्यातवें भागप्रमाण असंख्यातभागवृद्धिवाले जीवोंके अनन्तगुणे होनेमें कोई विरोध नहीं आता है।
शंका—असंख्यातभागवृद्धिविभक्तिवाले जीव सब जीवराशिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-दो समय द्वारा संचित होनेसे जाना जाता है।
ॐ अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं।
६५६८. क्योंकि इनका संचयकाल अन्तर्मुहुर्त है। या ये एकेन्द्रियजीवराशिके संख्यातवें भागप्रमाण हैं।
शंका-ये एकेन्द्रियराशिके सं यातवें भाग हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-एकेन्द्रियोंके वृद्धि, हानि और अवस्थितकालोंका जोड़ करके और उसमें अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अवस्थितकालका भाग देकर जो संख्यात अङ्क लब्ध आवें उनका सब जीव
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