Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
HINI
गा० २२ ] वडिपरूवणाए अंतरं
२२१ अणंतकालमसंखेजा पो०परियट्टा । संखेजगुणहाणीए णत्थि अंतरं । असंखेज्जमागहाणी० ज० एगस०, उ० अंतोमु०। सम्मत्त०-सम्मामि० असंखज्जभागहाणीए जहण्णुक्क० एगस०। संखज्जमोगहाणी. जह० अंतोमु०, उक० पलिदो० असंखेज्जदिभागो। संखज्जगुणहाणी० जहण्णुक्क० पलिदो० असंखेज्जदिभागो । असंखेज्जगुणहाणी० णस्थि अंतरं ।
६३५७. आहाराणु० आहारीसु मिच्छत्त बारसक०णवणोक० असंखज्जभागव ड्डिअवढि० जह० एगस०, उक्क० तेवद्विसागरोवमसदं तीहि पलिदोवमेहि सादिरेयं । संखेज्जगुणवड्डि-संखेज्जगुणहाणि-संखेज्जभागहाणी० ज० अंतोमुहत्तं । संखेज्जभागवड्डी० ज० एगस० । इस्थि-पुरिस० अंतोमु०, उक्क० सम्वेसिमंगुलस्त असंखेज्जदिभागो। असंखेज्जभागहाणी० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखेज्जगुणहाणी० जहण्णुक० अंतोमु० । एवमणंताणु०चउक्क० । णवरि असंखेज्जभागहाणी० ज० एगस०, उक्क० वेछावद्विसागरो० देसूणाणि । असंखेज्जगुणहाणि अवत्तव्व० ज० अंतोमु०, उक्क० अंगुलस्स असंखेज्जदिमागो। सम्मत्त०-सम्मामि० तिण्णिवड्डि-तिण्णिहाणि-अवढि० जह• अंतोमु० | असंखेज्जभागहाणी० जह० एगस । असंखेज्जगुणवड्डि-अवत्तव्य. जह० पलिदो० असंखंजदिमागो । उक्क० सव्वेसिमंगुलस्स असंखेज्जदिमागो।
एवमंतराणुगमो समत्तो। एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहण है तथा उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। संख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण है। संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । असंख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं हैं।
६३५७. आहारकमार्गणाके अनुवादसे आहारकोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और पल्य अधिक एकसौ त्रेसठसागर है। संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणहानि और संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त, संख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है पर स्त्रीवेद और पुरुषवेद की संख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एकसौ बत्तीस सागर है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त, असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और असंख्यातगुणवृद्धि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org