Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 283
________________ २६२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ ४३१. आणदादि जाव णवगेवज० छब्बीसंपयडीणमसंखे०भागहाणि. णत्थि अंतरं । संखे०भागहाणि० जह० एगससओ, उक्क० सत्त रादिदियाणि सादिरेयाणि । संखे०भागहाणीए सादिरेयसत्तरादिंदियाणि अंतरमिदि जं भणिदं तण्ण घडदे, आणदादिसु किरियाविरहिदस्स हिदिखंडयघादाभावादो। ण चाणताणुबंधिविसंजोयणाए सम्मत्तगहणकिरियाए च सत्तरादिदियमेत्तमंतरमत्थि, तत्थ चउवीस-१ अहोरत्तमेत्तअंतरपरूवणादो त्ति ? ण एस दोसो, सुक्कलेस्सियमिच्छाइट्ठीसु विसोहिमावरिय हिदिकंडयघादं कुणमाणेसु संखे०भागहाणीए सत्तरादिदियमेत्तरुवलंभादो। संखेजगुणहाणिमाणदादिदेवा किण्ण कुणंति ? ण, तारिसविसिट्ठविसोहीए तत्थाभावादो । तं पि कुदो णव्वदे ? एदम्हादो चेव उच्चारणुवदेसादो। अणंताणु०चउक्क० संखेगुणहाणि-असंखे गुणहाणि-अवत्तव्व० जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ताणि सादिरेयाणि । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । चत्तारिवाड्दितिण्णिहाणि-अवत्तव्व० जह एगस०, उक० चउवीसमहोरत्ताणि सादिरेयाणि । अणुदिसादि जाव सव्वट्ठसिद्धि त्ति अहावीसपय० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । ६ ४३१. आनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयेकतकके देवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंल्यात भागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात रात-दिन है। शंका–संख्यातभागहानिका जो साधिक सात दिनरात अन्तर कहा है वह नहीं बनता है, क्योंकि आनत आदिकमें क्रियारहित जीवके स्थितिकाण्डकघात नहीं होता है। यदि कहा जाय कि अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना और सम्यक्त्वके ग्रहण करने रूप क्रियामें सात दिनरात अन्तर होता है सो भी बात नहीं है, क्योंकि इस विषयमें चौबीस दिनरात प्रमाण अन्तर कहा है। समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि विशुद्धिको पूरा कर स्थितिकाण्डकघात करनेवाले शुक्ललेश्यावाले मिथ्यादृष्टियोंमें संख्यातभागहानिका सात दिनरात अन्तर पाया जाता है। शंका--आनत आदि कल्पोंके देव संख्यातगुणहानिको क्यों नहीं करते हैं ? समाधान नहीं, क्योंकि उस प्रकारकी विशिष्ट विशुद्धि वहाँ पर नहीं है। शंका—यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-उच्चारणाके इसी उपदेशसे जाना जाता है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यातगुणहानि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन रात है। सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्वको असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका १. ता० प्रती -मस्थि चउवीस इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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