Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 296
________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए वड्ढीए अप्पाबहुअं २७५ ___ ४६१. कुदो ? दंसणमोहक्खवगाणं संखेजत्तादो । णेमो हेयू असिद्धो, मणुसपज्जत्तरासिं मोत्तण अणत्थ तक्खवणाभावादो। ण च मणुसपजत्तरासी सव्यो पि दसणमोहणीयं खवेदि, अछुत्तरछस्सदमेत्तजीवाणं चेव तक्खवणुवलंभादो । ण च ते सव्वे एगसमयमसंखे०गुणहाणिं करेंति, अठुत्तरसयजीवाणं चेव एगसमए असंखे०गुणहाणिं कुणंताणमुवलंभादो। अणियट्टिकरणद्धाए संखे०सहस्समेत्ताणि असंखे०गुणहाणिट्टिदिकंडयाणि । तेसु कंडएसु एगसमयम्मि' वट्टमाणणाणाजीवे घेत्तूण असंखे०गुणहाणिद्विदिविहत्तिया जीवा सव्वत्थोवा त्ति भणिदा। संखेजगुणहाणिकम्मंसिया असंखेजगुणा। ६४६२. कुदो ?, सण्णिपजत्तापजत्ताणं जगपदरस्स असंखे०भागमेत्ताणमसंखे०भागत्तादो । तेसिं को पडिभागो? अंतोमुहुतं । छस्समयाहियअसंखे० भागहाणिअवट्ठिदाणमद्धाओ त्ति वुत्तं होदि । संखेज्जभागहाणिकम्मंसिया संखेज्जगुणा । ६४६३. कुदो ? तिव्यविसोहिए परिणदजीवेहिंतो मज्झिमविसोहीए परिणदजीवाणं संखेजगुणत्तादो। का विसोही णाम ? द्विदिखंडयघादहेदुजीवपरिणामा विसोही णाम । तासिं किं पमाणं ? असंखे०लोगमेत्ताओ जहण्णविसोहिप्पहुडि $ ४६१. क्योंकि दर्शनमोहनायकी क्षपणा करनेवाले जीव संख्यात हैं। यह हेतु असिद्ध नहीं है, क्योंकि मनुष्य पर्याप्तराशिको छोड़कर अन्यत्र मिथ्यात्वका क्षय नहीं होता है। उसमें भी सभी मनुष्यपर्याप्तराशि दर्शनमोहनीयका क्षय नहीं करती है, क्योंकि छह सौ आठ जीव ही उसका क्षय करते हुए पाये जाते हैं। उसमें भी वे सब जीव एक समयमें असंख्यातगुणहानि नहीं करते हैं, क्योंकि एक समयमें अधिकसे अधिक एक सौ आठ जीव ही असंख्यातगुणहानि करते हुए पाये जाते हैं। अनिवृत्तिकरणके कालमें संख्यात हजार असंख्यातगुणहानि स्थितिकाण्डक होते हैं। उन काण्डकोंमें एक समयमें विद्यमान नाना जीवोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानि स्थितिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं यह उक्त सूत्रका अभिप्राय है। * संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। ६ ४६२. क्योंकि ये जीव जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण संज्ञी पर्याप्त और अपर्याप्तकों के असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। यह प्रमाण लानेके लिए प्रतिभाग क्या है ? अन्तर्मुहूर्तकाल प्रतिभाग है। असंख्यातभागहानि और अवस्थितके कालमें छह समय मिला देने पर यह काल होता है यह इसका तात्पर्य है। * संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। ६ ४६३. क्योंकि तीव्र विशुद्धिसे परिणत हुए जीवोंकी अपेक्षा मध्यम विशुद्धिसे परिणत हुए जीव संख्यातगुणे होते हैं। शंका-विशुद्धि किसे कहते हैं ? समाधान—स्थितिकाण्डकके घातके कारणभूत जीवोंके परिणामोंको विशुद्धि कहते हैं। शंका-इन विशुद्धियोंका प्रमाण कितना है ? १. ता०प्रतौ तेसिमुदएसु एगसमयम्मि इति पाठः । २. आ०प्रतौ छमासाहियअसंखे० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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