Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 288
________________ २६७ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढीए अंतरं एगस०, उक्क० अंगुल० असंखे भागो। ___४३८. वेउव्वियमिस्स० मिच्छत्त०-सोलसक०-णवणोक० तिण्णिवड्डि-तिण्णिहाणि-अवढि० जह० एगस०, उक्क० बारस मुहुत्ता। सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० ज० एगस०, उक्क० बारस मुहुत्ता। तिण्णिहाणि० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। ४३९. कम्मइय० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० असंखे०भागवड्डि-हाणिअवट्टि० णत्थि अंतरं । संखे०भागवड्डि-हाणि-संखेजगुणवड्डि-हाणि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु०। सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । संखे०भागहाणि-संखे०गुणहाणि-असंखे०गुणहाणि० जह० एगसमओ, उक० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । एवमणाहारीणं पि वत्तव्वं । ४४०. आहार०-आहारमिस्स० अहावीसं पयडीणमसंखे०भागहाणि० जह. एगस०, उक्क० वासपुधत्तं । एवमकसा०-जहाक्खाद० । णवरि चउबीसं पयडोणं ति वत्तव्वं । ६४४१. वेदाणु० इत्थि० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणिअवहि० णत्थि अंतरं । तिण्णिवड्डि-दोहाणि० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोसु० । समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है।। ६४३८. वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है । तीन हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। ४३९. कार्मणकाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिका तथा संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यांतभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है । इसीप्रकार अनाहारकोंकी अपेक्षा कहना चाहिए। ६४४०. आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। इसी प्रकार अकषायी और यथाख्यातसंयतोंके जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके चौबीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा अन्तर कहना चाहिए। ६४४१. वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदियों में मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। तीन वृद्धि औरोदी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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