Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ गुणहाणि० जह० एगस०, उक्क० छम्मासा। एवमणंताणु०चउक्क० । णवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्तव्व० जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। सम्मत्तसम्मामि० असंखे०भागहाणि णत्थि अंतरं । चत्तारिवाड्दि-तिण्णिहाणि-अवत्तव्व० ज० एगसमओ, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। अवढि० ज० एगस०, उक्क० अंगुल० असं०भागो। एवं कायजोगि-ओरालियकायजोगीणं । णवरि असंखे०भागवड्डीए णत्थि अंतरं।
४३६. ओरालियमिस्स० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० असंखे०भागवड्डिहाणि-अवहि० णधि अंतरं । संखे भागवड्डि-हाणि-संखे०गुणवड्डि-हाणि० ज० एगस०, उक० अंतोमु० । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । तिण्णिहाणि. जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे।
६४३७. वेउविय० मिच्छत्त०-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणि-अवहि० णत्थि अंतरं । सेसपदवि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवमणंताणु०चउक्क० । गवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। सम्मत्त० सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । चत्तारिवाड्दि-तिण्णिहाणिअवत्तव्वं जह० एगसमओ, उक्क० चउवीसमहोरत्ते 'सादिरेगे। अवढि० जह० गुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवं भागप्रमाण है। इसीप्रकार काययोगी और औदारिककाययोगी जीवोंके जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातभागवृद्धिका अन्तर नहीं है।
६४३६. औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। संख्यातभागबृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि, और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। तीन हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है।
४३७. वैक्रियिककाययोगियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। शेष पदविभक्तियोंका जघन्य अन्तर एक समय
और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय
और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक
१ आ. तप्रौ एगसमओ चउवीसमहोरत्ते इति पाठः ।
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