Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 277
________________ २५६. जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ द्विदिविहत्ती ३ असंखे० भागो । विहंगणाणी ० छब्बीसं पयडीणमसंखे ० भागहाणि - अवद्वि० सम्वद्धा । तिण्णिवड्डि- दोहाणि ० जह० एस ०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । सम्मत्तसम्मामि० असंखे० भागहाणि० सव्वद्धा । सेसहाणि० ज० एस ०, उक्क० आवलि० असं० भागो । ० S ४१४. आभिणि० - सुद० - ओहि० अट्ठावीसं पयडीणमसंखे ० भागहाणि सव्वद्धा । संखे० भागहाणि - संखे० गुणहाणि० ज० एस ०, उक्क० आवलि० असं० भागो । अताणु ० चउक्क० असंखे० गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । सेकम्माणमसंखे • गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । एवमोहिदंस०सम्मादिट्ठिति । मणपज्जव० अट्ठावीसं पयडीणं असंखेजभागहाणि० सव्वद्धा । संखे० भागहाणि - संखेज गुणहाणि असंखे ०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० संखे ० समया । णवरि मिच्छत्त-सम्मत्त - सम्मामि ० - तेरसकसायाणं संखे ० भागहाणि ० जह० एस ०, उक्क ० आवलि० असंखे ० भागो । एवं संजद० - सामाइय - छेदो ० संजदे त्ति । णवरि सामाइयछेदो० लोभसंजल० संखे० भागहा ० जह० एस ०, उक्क० संखेजा समया । ० ० ४१५. परिहार • अट्ठावीसं पयडीणमसंखे ० भागहाणि सव्वद्धा । संखे० भागहाणि ० जह० एस ०, उक्क० संखे० समया । णवरि मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि० - अनंताणु० एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । विभंगज्ञानियों में छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है । तीन वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है । तथा शेष हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । $ ४१४. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहनिका काल अदा है । संख्यातभागहानि, और संख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल भावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । शेष कर्मोंकी असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । मन:पर्ययज्ञानियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है । संख्यात भागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और तेरह कषायोंकी संख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवों में लोभ संज्वलनकी संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । $ ४१५. परिहारविशुद्धिसंयतों में अट्ठाईस प्रकृतियों की असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है । संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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