Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 276
________________ गा० २२] वडिपरूणाए कालो २५५ पलिदो० असंखे०भागो। तिण्णिहाणि० ज० एगस०, उक्क० मावलि. असंखे०भागो। $ ४१०. कम्मइय० छब्बीसं पयडीणमसंख०मागवड्डि-हाणि-अवढि० सत्रद्धा । दोवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे० मागो। सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिहाणि० ज० एगस०, उक० आवलि० असंखे०भागो। एवमणाहारीणं। ४११. आहार० अट्ठावीसं पयडीणमसंखे०भागहाणि. ज. एगस०, उक्क० अंतोमु० । आहारमि० अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणी० जहण्णुक्क० अंतोपु० । ६४१२. अवगदवेद० च वीसं पयडोणमसंखे०भागहाणि० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । संखे०भागहाणि-संखे० गुणहाणि० जह० एगस०, उक्क० संखेजा समया । णवरि दंसणतिय-अट्ठक०-इत्थि०-णवूस० संखेज गुणहाणी णत्थि । लोभसंजल. संखे०मागहाणि० जह० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। अकसा० चउवीसं पयडीणमसंखे०भागहाणि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं जहाक्खाद० । ६४१३. मदि०-सुद० असंखे०भागवडि-हाणि-अवद्विदं च छब्बीसं पयडीणं सव्वद्धा। दोवड्डि-दोहाणि० जह• एगस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो। सम्मत्तसम्मामि० असंख०मागहाणि सव्वद्धा । सेसहाणि० जह० एगस०, उक्क० आवलि. काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा तीन हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४१० कर्मणकाययोगियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है। तथा दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारकोंके जानना चाहिए। ६ ४११ आहारककाययोगियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। आहारकमिश्रकाययोगियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। $ ४१२ अपगतवेदियोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। किन्तु इतनी विशेषता है कि तीन दर्शनमोहनीय, आठ कषाय, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी संख्यातगुणहानि नहीं है। लोभसंज्वलनकी संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अकषायी जीवोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार यथाख्यातसंयत जीवों के जानना चाहिए। ६४१३ मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है। दो वृद्धि और दो हानियों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। तथा शेष हानियोंका जघन्य काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376