Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ हिदिविहन्ती ३
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बारसक० णवणोक० संखेज्जभागहाणी० जहष्णुक ० एगसमओ । सुहुमसांपराय ० चवीसपयडीणमसंखेज्जभागहाणी ० ० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । दंसणतियलोभसंजलणाणं संखेज्जभागहाणी • जहण्णुक० एस० । णवरि लोभसंज० जह० एगस ०, उक्क ० उक्कस्ससंखेज्जं दुरूवूणं । लोभसंज० संखेज्जगुणहाणी ० जहण्णुक्क • एगस० । संजदासंजद० परिहारसंजदभंगो । असंजद० छन्वीसं पयडीणं तिण्णिवड्डिअवट्ठाणाणमोघं । असंखेज्जभागहाणी ० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । संखेज्जगुणहाणी० श्रघं । एकवीसपयडीणं संखेज्जभागहाणी० जहण्णुक० एगस० । मिच्छत्त० - अनंताणु० संखेज्ज भागहाणि - असंखेज्जगुणहाणी ० सम्मामि० सच्चपदाणमणंताणु अवत्तव्वस्स च ओघं । णवरि सम्म० सम्मामि० असंखेज्जभागहाणी ० उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ।
सम्मत्त०
I
अनन्तानुबन्धचतुष्ककी तीन हानियोंका काल ओघ के समान है । बारह कषाय और नौ नोकषायों की संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सूक्ष्मसां परायिकसंयतों में चौबीस प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । तीन दर्शनमोहनीय और लोभसंज्वलनकी संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । किन्तु इतनी विशेषता है कि लोभसंज्वलनकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो कम उत्कृष्ट संख्या प्रमाण है । तथा लोभसंज्वलन की संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । संयतासंयतों का भंग परिहारविशुद्धिसंयतों के समान है । असंयतों में छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि और अवस्थानका काल ओघ के समान है। असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। संख्यातगुणहानिका काल ओघ के समान है । इक्कीस प्रकृतियों की संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धचतुष्ककी संख्यातभागहानि और असंख्यात गुणद्दानिका काल तथा सम्यक्त्व और सम्यम्मध्यात्व के सब पदोंका काल तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यस्थितिविभक्तिका काल ओघने समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानिका उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है ।
विशेषार्थ – परिहारविशुद्धिसंयमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्व कोटिवषप्रमाण है इसलिये इसमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानिका जघन्य काल अन्तहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटिवर्ष प्रमाण कहा है। सूक्ष्म सम्परायसंयमका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिये इसमें २४ प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है। सर्वार्थसिद्धि में तेतीस सागरतक छब्बीस प्रकृतियों की और सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानि सम्भव है और यह जीव जब अन्य पर्याय में आता है तब भी कुछ कालतक यह पाई जाती है, अतः असंयतों के असंख्यात भागहानिका उत्कृष्ट काल साधिक तास सागर कहा है । असंयतोंके चारित्रमोहनीयकी क्षपणा सम्भव नहीं, इसलिये इनके २१ प्रकृतियोंकी संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है; क्योंकि इनमें से कुछ प्रकृतियों की संख्यातभागहानिका अधिक काल चारित्रमोहनीयकी क्षपणामें ही सम्भव है। शेष कथन सुगम है ।
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