Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ असंखेजभागहाणि-अवट्टि जह० एगस०, उक्क • अंतोमुहुः । दोवड्डि दोहाणीणं जहण्णमुक्कस्सं च अंतोमुहु०। सम्मत्त-सम्मामि० असंखेजभागहाणी० जहण्णुक्क० एगसमओ। तिण्णिहाणी० णत्थि अंतरं ।।
६३२९. मणुसतिय० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० पंचिंतिरिक्खमंगो। णवरि जम्हि पुव्व कोडिपुधत्तं तम्हि पुवकोडी देसूणा। असंखेज्जगुणहाणी. जहण्णुक० अंतोमु०। सम्मत्त-सम्मामि० पंचिंतिरिक्खभंगो। णवरि असंखेजगुणहाणी. जह. अंतोमुहु०, उक्क० तं चेव । अणंताणु० चउक्क० पंचि०तिरि०भंगो। णवरि जम्हि पुव. कोडिपुधत्तं तम्हि पुव्वकोडी देसूणा । असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। तथा तीन हानियोंका अन्तर नहीं है।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तक और मनुष्य लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंमें २६ प्रकृतियोंका यदि अविवक्षित पद एक समयके लिये होता है तो असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय प्राप्त होता है और यदि अविवक्षित पद अन्तर्मुहूर्त तक होता है तो इनका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है। तथा शेष दो वृद्धि और दो हानियोंमेंसे प्रत्येक वृद्धि या हानि अन्तर्मुहूर्तके पहले प्राप्त नहीं होती और उक्त मार्गणाओंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिये इनमें उक्त पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त प्राप्त होता है। अब रहीं सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व ये दो प्रकृतियाँ सो इनकी इनमें चार हानियाँ होती हैं। इनमेंसे संख्यातभागहानि आदि पदोंका तो यहाँ अन्तर सम्भव नहीं है, क्योंकि इनका यहाँ दो बार प्राप्त होना सम्भव नहीं है। हाँ जव असंख्यातभागहानि इनमेंसे किसी एक पदके द्वारा एक समयके लिये अन्तरित हो जाती है तब उसका अवश्य जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय प्राप्त होता है ।
$ ३२९. सामान्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनी इन तीन प्रकारके मनुष्योंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि जहाँ पूर्वकोटिपृथक्त्व कहा है वहाँ कुछ कम पूर्वकोटि कहना चाहिये । असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूत है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर वही है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि जहाँ पूवकोटिपृथक्त्व कहा है वहाँ कुछ कम पूर्वकोटि जानना चाहिए।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके २६ प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, अवस्थित, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट अन्तर काल पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण बतलाया है सो यहाँ तीन प्रकारके मनुष्योंके यह अन्तर कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण जानना चाहिये । उक्त पदोंका उत्कृष्ट अन्तर वहाँ पर ही सम्भव है जहाँ पर उतने काल तक असंख्यातभागहानि निरन्तर होती रहे। मनुष्यों में तो सम्यक्त्व अवस्था ऐसी है जहाँ पर उक्त पदोंकी निरंतर असंख्यात. भागहानि होती रहती है और यह काल कर्मभूमिके मनुष्योंमें कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण है, अतः उक्त पदोंका अन्तर कुछ कम पूर्वकोटि कहा है। भोगभूमिज मनुष्यों में असंख्यातभागवृद्धि आदि उक्त पद सम्भव नहीं है, अतः तीन पल्य अन्तर नहीं कहा। तिर्यंचोंमें असंज्ञी भी होते हैं जिनका उत्कृष्ट
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