Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२) वडिपरूवणाए अंतर
२११ अंतोमु०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । सम्मत्त-सम्मामि० तिण्णिवड्डि-अवट्ठाणाणं जह० अंतोमु० । असंखेजभागहाणी० जह० एगसमओ। असंखेजगुणवड्डि-अवत्तव्वाणं जह० पलिदो० असंखेजदिभागो। असंखेजगुणहाणीए जह० अंतोमु०, उक० सम्वेसि पि पलिदो. वमसदपुधत्तं देसूणं । संखेजभागहाणि-संखेजगुणहाणीणं जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं देसूणं । कुदो ? पुरिसवेदो णवंसयवेदो वा सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणि उज्वेल्लमाणो अच्छिदो इत्थिवेदेसु उप्पण्णविदियसमए संखजभागहाणि-संखजगुणहाणीओ काऊण तदियसमए णिस्संतत्तणेण संखेजगुणहाणीए च अंतरिय पलिदोवमसदपुधत्तं संतेण विणा अच्छिद्ण अवसाणे सम्मत्तं घेत्तूण संखेन्जभागहाणि-संखेजगुणहाणीसु कयासु पलिदोवमसदपुधत्तंतरस्सुवलंभादो।
६३४०. पुरिसवेदेसु मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखेज्जमागवड्डि-अवट्ठि. जह० एगसमओ, उक्क० तेवद्विसागरोवमसदं तीहि पलिदोवमेहि सादिरेयं । असंखेज्जऔर उत्कृष्ट अन्तर सौ पल्यपृथक्त्व प्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी तीन वृद्धि और अवस्थानका जघन्य अन्तर अन्तमुहूते, असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय, असंख्यातगणवृद्धि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा असंख्यात हानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तर कुछकम सौ पल्यपृथक्त्व है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछकम सौ पल्यपृथक्त्व है, क्योंकि एक पुरुषवेदी या नपुंसकवेदी जीव सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना कर रहा है पुनः उसने स्त्रीवेदियोंमें उत्पन्न होनेके दूसरे समयमें संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिको करके तीसरे समयमें उक्त कर्मोंको निःसत्त्व करके संख्यातगुणहानिका अन्तर किया। पुनः सौ पल्यपृथक्त्वतक सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सत्त्वके बिना रहकर अन्तमें उसके सम्यक्त्वको ग्रहण करके संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिके करनेपर सौ पल्यपृथक्त्व प्रमाण उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त होता है।
विशेषार्थ-स्त्रीवेदमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल कुछ कम पचवन पल्य बतला आये हैं अतः यहाँ उक्त प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि, अवस्थित, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्य कहा । यहाँ अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके उसके अभावका भी उत्कृष्ट काल कुछ कम पचवन पल्य प्राप्त होता है, अतः अनन्तानुबन्धीकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट अन्तर काल भी उक्त प्रमाण कहा। तथा स्त्रीवेदका उत्कृष्ट काल सौ पल्यपृथक्त्व है। अब यदि किसी जीवने प्रारम्भमें और अन्तमें अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना की और तदनन्तर वह अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ तो अनन्तानुबन्धीकी असंख्यातगुणहानि और
कव्यका उत्कृष्ट अन्तर काल सौ पल्यपृथक्त्वप्रमाण प्राप्त होता है। इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदोंका यथासम्भव उत्कृष्ट अन्तरकाल घटित करना चाहिये। इसी प्रकार पुरुषवेदमें भी सब प्रकृतियोंके यथासम्भव सब पदोंके अन्तरकालका विचार कर लेना चाहिये। आगेकी मार्गणाओंमें भी इसी प्रकार काल आदिको विचार कर अन्तरकाल घटित कर लेना चाहिए।
६३४०. पुरुषवेदियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितका जघन्य अतर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर तीन पल्य अधिक एकसौ त्रेसठ सागर ,
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