Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
२०४
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ द्विदिविहत्ती ३
वाउ ० - बादरवाउ० - सुहुमवाउ ० - वणप्फदि - बादरवणफदि ० - सुहुमवणफदि० - णिगोदबादरणिगोद- सुमणिगोद-बादरवणष्फ दिपत्ते यसरीश त्ति ।
९ ३३३. बादरएइंदियपज्जतएसु मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक ० असंखज्जभागवड्डिअसंखेज्जभागहाणि-अवट्ठिद० जह० एगस०, उक्क० अंतोमुहु० | संखेज्जभागहाणिसंखेज्जगुणहाणीणं णत्थि अंतरं । सम्मत्त सम्मामि० असंखेज्जभागहाणी ० जहण्णुक ० एगस० | संखेज्जभागहाणि संखेज्जगुणहाणि असंखेज्जगुणहाणीणं णत्थि अंतरं; संखेज्ज - वस्तसहस्समे तपज्जत्तट्ठिदीदो उब्वेल्लणकालस्स बहुत्तादो | एवं बादरेइंदिय अपज्ज०सुडुमेइंदिय पञ्जत्तापञ्जत्त - चादर पुढ विअपज० - सुहुम पुढ विपञ्जत्तापज्जत्त - वादग्आउअपा०सुहुम आउपज्जत्तापज्जत्त - बादरते उअपज्ज० - मुहमते उपज्जत्तापज्जत - बादरवाउअपज्ज०सुहुमवाउपज्जत्तापज्जत्त- बादरवणप्फदिअपज्ज० सुहुमवणप्फ दिपज्जत्तापञ्जत- बादरणिगोदअपज्ज ०. -सुहुमणिगोदपज्जत्तापज्जत्त - बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरअपज्ज० वादरपुढविपज्ज० बादरआ उपज्ज० - बादर ते उपज्ज० - बादरवाउपज्ज० - बादरवणफदिपज्ज० - बादरणिगोदपज्ज० - बादरवणप्फदिपत्तयसरीरपज्जत्ते त्ति । सव्वविगलिंदियाणमसंखेज्जभागवड्डिअसंखेज्जभागहाणि-अवट्ठिदाणं जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहु० | संखेज्जभागवड्डिसंखेज्जभागहाणीणं जहण्णुक० अंतोमुहु० । संखेज्जगुणहाणीए णत्थि अंतरं । छब्बीसपडीणमेसा परूवणा । सम्मत्त सम्मामि० असंखेज्जभागहाणी० जहण्णुक्क० एस० ।
बादर वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक, निगोद, बादर निगोद, सूक्ष्म निगोद और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके जानना चाहिए । ९३३३. बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी श्रसंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। संख्यात भागहानि और संख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यात भागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं है, क्योंकि पर्याप्तककी संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थिति से उद्वेलनाका काल बहुत है । इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त और अर्पाप्त, बादर जयकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर्शनगोद अपर्याप्त, सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, वादर अभिकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त, बादर निगोद पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। सब विकलेन्द्रियों में असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थानका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । संख्यातभागवृद्धि और संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । संख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं है । यह प्ररूपणा छब्बीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा से की है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर
Jain Education International
०.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org