Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
वडिपरूवणाए अंतरं * एगजीवेण अंतरं। ६३१५. सुगममेदं ।
* मिच्छत्तस्स असंखेज भागवडि-अवहाणहिदिविहत्तियंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
$ ३१६. सुगममेदं। * जहणणेण एगसमयं ।
३१७. तं जहा–असंखेज्जभागवड्डिमट्ठाणं च पुध पृध कुणमाणदोजीवेहि विदियसमए अप्पिदपदविरुद्धपदम्मि अंतरिय तदियसमए अप्पिदपदेणेव परिणदेहि एगसमयमंतरं होदि त्ति मणेणावहारिय एगसमओ त्ति मणिदं ।। ___ * उक्कस्सेण तेवहिसागरोवमसदं तीहि पलिदोवमेहि सादिरेयं । ____६३१८. कुदो ? असंखेज्जभागहाणि-संखेज्जभागहाणीणमुक्कस्सकालेहि अंतरिय अप्पिदपदेण परिणदाणं तदुवलंभादो।।
* संखेजभागवड्डि-हाणि-संखेजगुणवड्डि-हाणिहिदिविहत्तियंतरं जह गणेण एगसमो हाणी० अंतोमुहुत्तं ।
प्रमाण है, अतः असंज्ञियोंमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है। संख्यातगुणवृद्धिके दो समय केवल आहारक अवस्थामें नहीं प्राप्त होते, इसलिये इनका आहार कके निषेध किया है। तो भी जैसा कि पहले घटित करके बतला आये हैं तदनुसार सात नोकषायोंकी संख्यातगुणवृद्धिका उत्कृष्ट काल दो समय आहारकोंके भी बन जाता है।
इस प्रकार कालानुगम समाप्त हुआ। * अब एक जीवकी अपेक्षा अन्तरानुगमका अधिकार है। ६ ३१५ यह सूत्र सुगम है।
* मिथ्यात्वकी असंख्यातमागवृद्धि और अवस्थानस्थितिविभक्तिका अन्तर काल कितना है ?
६ ३१६ यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तरकाल एक समय है।
६३१७ जो इसप्रकार है-असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थानको अलग-अलग करनेवाले दो जीव दुसरे समयमें विवक्षित पदोंसे विरुद्ध पदद्वारा अन्तर करके तीसरे समयमें पुनः विवक्षित पदोंसे ही परिणत होगये तो एक समय अन्तर होता है ऐसा मनमें निश्चय करके उक्त दोनों पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है ऐसा कहा है ।
* उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन पल्य अधिक एकसौ वेसठ सागर है।
६३१८ क्योंकि असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानिके उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा अन्तर करक विवक्षित पदोंसे परिणत हुए जीवों के उक्त अन्तर काल पाया जाता है।
* मिथ्यात्वकी संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिस्थितिविभक्तियों में से वृद्धियोंका जघन्य अन्तर एक समय और हानियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूते है।
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