Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती३ २९८. संखेज्जभागहाणी० संखेज्जगुणहाणी० जहण्णुक० एगस० । अवढि० ओघ । सोलसक०-णवणोक० असंखेज्जभागवड्डी० जह० एगस०, उक्क० सत्तारस समया। संखज्जभागवड्डी० जहण्णुक० एयस० । अवढि० ओघं । असंखज्जभागहाणि-संखेज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणीणं मिच्छत्तभंगो। सम्मत्त-सम्मामि० असंखेज्जभागहाणी० जह० एयस०, उक्क० संखेज्जाणि वाससहस्साणि । संखेज्जभागहाणी० जह० एयस०, उक० उक्कस्ससंखेज्जं दुरूवणं । संखेज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणी० जहण्णुक० एयस०। एवं बेइंदियअपज्ज-तेइंदियअपज्ज० चउरिदियअपज्जत्ताणं । णवरि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमसंखेज्जभागहाणी० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० ।
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६२६८. संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितका काल ओघके समान है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल सत्रह समय है । संख्यातभागवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अवस्थितका काल ओघके समान है। असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका भंग मिथ्यात्वके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। संख्यागभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो कम उत्कृष्ट संख्यातप्रमाण है। तथा संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त और चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ द्वीन्द्रियादिक उपर्युक्त मार्गणाओंका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है, इसलिये इनमें मिथ्यात्व आदि २६ प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष प्राप्त होना चाहिये था। पर यहाँ यह काल अन्तर्मुहूर्त बतलाया है। वीरसेन स्वामीने इसका एक समाधान किया है। वे लिखते हैं कि जिन विकलेन्द्रियोंके संज्ञीके योग्य स्थिति सत्कर्म है उनके संख्यातभागहानिप्रमाण काण्डकके पतनके बाद अन्तर्मुहूर्तके भीतर नियमसे संख्यातभागहानिप्रमाण काण्डकके पतनका उपदेश आगममें पाया जाता है। इससे मालूम होता है कि असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। पर इस समाधानके बाद भी एक प्रश्न खड़ा ही रहता है। कि जिन विकलेन्द्रियोंके संज्ञीके योग्य स्थितिसत्कर्म नहीं है उनके असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष क्यों नहीं कहा । यद्यपि इसका सन्तोषकारक समाधान करना तो कठिन है फिर भी चूँकि यहाँ असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बतलाया है और विकलेन्द्रिय जीव संख्यातभागहानिका प्रारम्भ कर सकते हैं ऐसा नियम है। इससे मालूम होता है कि जिन विकलेन्द्रियों के संज्ञीके योग्य स्थितिसत्कर्म न भी हो वे भी अन्तर्मुहूर्तमें संख्यातभागहानि करते हैं, अतः असंख्यात. भागहानिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है। किन्तु इन मार्गणाओंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष ही है। तथा इन द्वीन्द्रियादिक अपर्याप्तकोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इनमें असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा । शेष कथन सुगम है।
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