Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] वड्डिपरूवणाए कालो
१८१ खेज्जभागहाणि-संखेज्जभागहाणीणं जह० एगसमओ, उक्क० वे समया । एवमणाहारीणं । आहार० अट्ठावीसपयडीणमसंखेज्जभागहाणो० ज० एगस०, उक० अंतोमु० । आहारमिस्स० असंखेज्जभागहाणी. जहण्णुक्क० अंतोमु०। ।
६३०४. वेदाणुवादेण इथि० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० असंखेज्जभागवड्डि. अवढि० ओघं । संखेज्जभागवड्डि-संखेज्जगुणवड्डीणं पढमपुढविभंगो । णवरि हस्स-रदिअरदि सोग-इत्थि-पुरिस-णqसयवेदाणं संखेज्जगुणवड्डीए उक्व० वे समया । असंखेज्जमागहाणीए ज० एगसमओ, उक्क. पणवण्णपलिदो० देसूणाणि । संखेज्जमागहाणि-संखेज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणीणमोघं । णवरि लोमसंज० संखेज्जमागहाणीए जहण्णुक्क०
विशेषता है कि असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है। इसी प्रकार अनाहारकोंके जानना चाहिए। आहारककाययोगियोंमें अट्ठाईस
तियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्महते है। आहारकमिश्रकाययोगियोंमें असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ—पाँचों मनोयोग और पाँचों वचनयोगोंका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है, अतः इनमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा । औदारिककाययोगियोंमें संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिके उत्कृष्ट काल जो दो समयोंका निषेध किया सो इसका कारण यह है कि यह उत्कृष्ट काल अपर्याप्त अवस्थामें प्राप्त होता है पर औदारिककाययोग पर्याप्त अवस्थामें होता है। एकेन्द्रियोंके एक काययोग ही होता है और उनके असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण बतला आये हैं, अतः काययोगमें भी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है। किन्तु औदारिककाययोगका उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है, अतः इसमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है।
औदारिकमिश्रकाययोगमें जो खावेद और पुरुषवेदकी संख्यातभागवृद्धिके उत्कृष्ट काल दो समयका निषेध किया सो इसका कारण ओघके समान यहाँ भी समझना चाहिये । अर्थात् संख्यातभागवृद्धिका दो समय काल जो दोइन्द्रिय तेइन्द्रियोंमें और तेइन्द्रिय चौइन्द्रियोंमें उत्पन्न होते हैं उनके प्राप्त होता है पर वहाँ भवके अन्तमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदका बन्ध सम्भव नहीं, अतः वहाँ बीवेद और पुरुष. वेदकी संख्यातभागवृद्धिका उत्कृष्ट काल दो समय सम्भव नहीं है। वैक्रियिककाययोगका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है अतः इसमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। छब्बीस प्रकृतियों की संख्यातभागवृद्धिका और सात नोकषायोंकी संख्यातगुणवृद्धिका उत्कृष्ट काल दो समय औदारिकमिश्रकाययोगमें ही बनता है अतः इसका वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें निषेध किया है।
६३०४. वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितका काल ओघके समान है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका काल पहली पृथिवीके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि हास्य, रति, अरति, शोक, खीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी संख्यातगुणवृद्धिका उत्कृष्ट काल दो समय है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम पचवन पल्य है। संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका काल ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि लोग संघलनकी संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनन्तानुबन्धी
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