Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 184
________________ गा०२२] वडिपरूवणाए सामित्त १६३ ओहिदंस०-सम्मादि०-खइय०-वेदय०-उवसमसम्मादिहि ति। णवरि अप्पप्पणो पय० पदविसेसो जाणियव्यो। ६ २७२. ओरालियमिस्स० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० तिण्णिवड्डी अवठ्ठाणं च कस्स ? अण्ण० मिच्छाइद्विस्स । असंखेज्जभागहाणी' कस्स ? अण्णद० सम्माइहिस्स मिच्छाइद्विस्स वा। संखेज्जमागहाणी संखेज्जगुणहाणी च कस्स ? अण्णद० मिच्छाइहिस्स । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं चत्तारि हाणीओ कस्स ? अण्णद० मिच्छाइडिस्स । गवरि सम्मत्तस्स असंखेज्जगुणहाणिवज्जाओ तिण्णि हाणीओ सम्मामि० असंखेज्जभागहाणी च सम्मादिद्विस्स वि होति । एवं वेउव्वियमिस्स-कम्मइय-अणाहारि त्ति । ६२७३. सुकले० असंखेज्जभागहाणि-संखेज्जमागहाणि-संखेज्जगुणहाणीओ मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० विसयाओ कस्स ? अण्णद० मिच्छादिहिस्स सम्मादिहिस्स वा । असंखेज्जगुणहाणी कस्स ? सम्माइद्विस्त । अणंताणु०चउक्क० अवत्तव्ब० ओघ । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं चत्तारि वड्डी अवट्ठाणं अवत्तव्वं च कस्सी पढमसमयसम्माइद्विस्स। चसारि हाणीओ कस्स ? मिच्छाइहिस्स सम्माइहिस्स वा। सासण० अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणी कस्स ? अण्णद० । सम्मामि० अट्ठावीसपयडीणं तिण्णि हाणीओ कस्स ? सम्मामिच्छाइद्विस्स । एवं सामिचाणुगमो समत्तो। अवधिदर्शनवाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी प्रकृतियोंके पदविशेष जानना चाहिए। २७२. औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी तीन वृद्धियाँ और अवस्थान किसके हैं ? अन्यतर मिथ्याष्टिके हैं। असंख्यातभागहानि किसके है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्याष्टिके है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानि किसके हैं ? अन्यतर मिथ्याष्टिके हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानियाँ किसके हैं ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी असंख्यातगुणहानिको छोड़कर शेष तीन हानियाँ तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि सम्यग्दृष्टिके भी होती है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। ६२७३. शुक्ललेश्यावालोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायविषयक असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानि किसके होती हैं ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टिके होती हैं। असंख्यातगुणहानि किसके होती है ? सम्यग्दृष्टिके होती है। अनन्तानुबन्धी चतुष्कका अवक्तव्यभंग ओघके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धियाँ, अवस्थान और प्रवक्तव्य किसके होते हैं ? सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें होते हैं। चार हानियाँ किसके होती हैं ? मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टिके होती हैं। सासादनसम्यग्दृष्टियों में अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि किसके होती है ? अन्यतरके होती है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी तीन हानियाँ किसके होती हैं ? सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होती हैं। इस प्रकार स्वामित्वानुगम समाप्त हुआ। १ ता. प्रतौ असंखेजगुणहाणी इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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