Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती ३ चत्तारि हाणी । बारसक०-णवणोक० अत्थि असंखेज्जमागहाणी संखेज्जभागहाणी च । एवं संजदासंजद० । असंजद० मिच्छत्त० अत्थि तिण्णि वड्डी चत्तारि हाणीओ अवट्ठाणं च । सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० मूलोघं। बारसक०-णवणोक० अत्थि तिणि वड्डी तिण्णि हाणी अवठ्ठाणं च । एवं तेउ०-पम्म० । सुहुमसंप० मिच्छत्तसम्मत्त-सम्मामि० अत्थि असंखेज्जभागहाणी संखेज्जभाणी । बारसक०-णवणोक० अस्थि असंखेज्जभागहाणी । णवरि लोभसंजल० संखज्जभागहाणी संखगुणहाणी च अस्थि ।
२६६. अभवि० छव्वीसं पयडीणमत्थि तिणि वड्डी तिणि हाणी अवट्ठाणं च । वेदगसम्माइट्टी० आमिणियोहियभंगो । णवरि बारसक० णवणोक० असंखेज्जगुणहाणी णथि । खइय० एकवीसपयडीणमत्थि असंखेज्जभागहाणी संखेज्जभागहाणी संखेज्जगुणहाणी असंखेज्जगुणहाणी च । उवसम० अट्ठावीसपयडीणमस्थि असंखेज्जभागहाणी संखेज्जगुणहाणी । अणंताणु० दोहाणीओ च। सम्मामि० अस्थि अट्ठावीसपयडीणमसंखेज्जभागहाणी संखेज्जभागहाणी संखेज्जगुणहाणी च ।
एवं समुकित्तणा समत्ता । ६२६७. सामित्ताणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघे० आदेसे० । ओघेण छव्वीसं पयडीणं तिण्णि वड्डी अवठ्ठाणं च कस्स ? अण्णदरस्स मिच्छादिहिस्स । तिणि हाणी कस्स ? अण्णद० सम्माइडिस्स मिच्छाइटिस्स वा । असंखेज्जगुणहाणी कस्स ? अण्णद० सम्मा
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चतुष्ककी चार हानियाँ हैं। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानि है। इसी प्रकार संयतासंयतोंके जानना चाहिए । असंयतोंमें मिथ्यात्वकी तीन वृद्धियाँ, चार हानियाँ और अवस्थान हैं। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मलोधके समान है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी तीन वृद्धियाँ तीन हानियाँ और अवस्थान हैं। इसी प्रकार पीत और पद्मलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए। सूक्ष्मसांपरायिकसंयतोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व
और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानि है। तथा बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि है। किन्तु इतनी विशेषता है कि लोभसंज्वलनकी संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानि है।
६२६६. अभव्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धियाँ, तीन हानियाँ और अवस्थान हैं। वेदकसम्यग्दृष्टियोंका भंग अभिनिबोधिकज्ञानियोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस प्रकृतियोंकी असंख्यात. भागहानि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानि है। तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी शेष दो हानियाँ हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानि हैं।
__ इस प्रकार समुत्कीर्तनानुगम समाप्त हुआ। ६२६७. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धियाँ और अवस्थान किसके होते हैं ? किसी एक मिथ्यादृष्टिके होते हैं। तीन हानियाँ किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्या
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