Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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१४२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती . संखेज्जेण खंडिय तत्थ एगखंडमेत्तहिदीहि मिच्छत्तट्ठिदीओ बंधेण वड्डाविय सम्मत्तं घेत्तूणावद्विदमिच्छत्तहिदीसु सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तेसु संकंतासु अपच्छिमा असंखेज्जभागवड्डी। ____ २४२. संपहि पढमवारणिरुद्धवेदगपाओग्गसम्मत्तसंतकम्मस्सुवरि समयुत्तरसंतकम्मियमिच्छादिद्धिं घेत्तण असंखेज्जभागवड्विपरूवणं कस्सामो। एदम्हादो णिरुद्ध हिदीदो मिच्छत्तहिदि दुसमयुत्तरं बंधिय सम्मत्ते गहिदे असंखेज्जभागवड्डी होदि । एवं तिसमयु. तरादिकमेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागमेत्तद्विदीओ मिच्छत्तम्मि वड्डाविय असंखज्जभागवड्डिपरूवणा कायव्वा । एवं विसमयुत्तर-तिसमयुत्तर-चदुसमयुत्तरादिकमेणब्भहियहिदिसंतकम्माणं णिरंभणं काऊण णेदव्वं जाव तप्पाओग्गअंतोमुहुत्तणूणसत्तरिसागरोवमकोडाकोडि ति। एवं णीदे एगेगसम्मत्तसंतकम्मद्विदीए उवरि पलिदोवमस्स संखेज्जदिमागमेत्ता असंखज्जभागवडिवियप्पा लद्धा होति । एवमेत्तिया चेव असंखज्जभागवडिवियप्पा लब्भंति त्ति णावहारणं कायव्वं; कत्थ वि एग-दो-तिण्णि-संखज्ज-असंखज्जअंतोहुमुत्तादिवियप्पाणमुवलंभादो । एवमसंखेज्जभागवड्डिपरूवणा कदा।
६२४३. संपहि संखेज्जभागवड्विपरूवणा कीरदे । एगो वेदगपाओग्गसम्मत्तसंतकम्मिओ मिच्छादिट्ठी तत्तो उवरि तप्पाओग्गजहण्हं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागमत्तमिच्छत्तट्ठिदिं वड्डिद्ण बंधिय सम्मत्ते गहिदे संखेज्जभागवड्डी होदि। पुणो संपहि
प्रमाण स्थितियोंके द्वारा मिथ्यात्वकी स्थितियोंको बन्धके द्वारा बढ़ाकर और सम्यक्त्वको ग्रहण करके बढ़ी हुई मिथ्यावकी स्थितियोंके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रान्त होने पर उत्कृष्ट असंख्यातभागवृद्धि होती है।
२४२. अब प्रथमबार विवक्षित वेदकसम्यक्त्वके योग्य सम्यक्त्वसत्कर्मके ऊपर एक समय अधिक सत्कर्मवाले मिथ्यादृष्टिको ग्रहण करके असंख्यातभागवृद्धिका कथन करते हैं-इस विवक्षित स्थितिसे मिथ्यात्वकी दो समय अधिक स्थितिको बाँधकर सम्यक्त्वके ग्रहण करने पर असंख्यातभागवद्धि होती है। इसी प्रकार तीन समय अधिक आदि क्रमसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंको मिथ्यात्व में बढ़ाकर असंख्यातभागवद्धिका कथन करना चाहिये। इस प्रकार तत्प्रायोग्य अन्तर्मुहूर्तकम सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थिति प्राप्त होने तक दो समय अधिक, तीन समय अधिक और चार समय अधिक आदि क्रमसे स्थितिसत्कर्मोंको ग्रहण करके कथन करना चाहिये । इस प्रकार कथन करने पर सम्यक्त्व सत्कर्मकी एक एक स्थिति के ऊपर पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण असंख्यातभागवृद्धिके विकल्प प्राप्त होते हैं। इस प्रकार इतने ही असंख्यातभागवृद्धिके विकल्प प्राप्त होते हैं ऐसा निश्चय नहीं करना चाहिये, क्योंकि कहीं पर एक, दो, तीन, संख्यात, असंख्यात और अन्तर्मुहूर्त आदि विकल्प पाये जाते हैं । इस प्रकार असंख्यातभागवृद्धिका कथन किया। ..
६२४३. अब संख्यातभागवृद्धिका कथन करते हैं-वेदकसम्यक्त्वके योग्य किसी एक सम्यक्त्वसत्कर्मवाले मिथ्यादृष्टि जीवने उसके ऊपर पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण तत्प्रायोग्य मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिको बढ़ाकर बाँधा पुनः उसके सम्यक्त्वके ग्रहण करने पर संख्यातभागवद्धि होती है । पुनः इस समय विवक्षित सम्यक्त्वके स्थिति सत्कर्मके ऊपर बढ़ी हुई मिथ्यात्वकी स्थिति
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