Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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१२६
जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ द्विदिविहत्ती ३
S २२९. अथवा पलिदोवमं धुवट्ठिदिं च दो एदूण' गणिय सत्यम्मि अणिउणसिस्ससंबोहणङ्कं पलिदोवमस्स संखेज मागवड्डीए जादा धुवट्टिदीए संखेज भागवड्डी होदि
मानलो - ध्रुवस्थिति पल्य
११५२
१४४
उत्कृष्ट स्थिति
उत्कृष्ट संख्यात
५
पहले समय में बाँधी हुई
स्थिति
११५२
११५२
११५२
११५२
११५२
११५२
११५२
११५२
११५२
१९५२
११५२
११५२
११५२
११५२
११५२
११५२
...
११५२०
अगले समय में बाँधी
हुई स्थिति
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११५३
१९५४
११५५
११६०
१२४८
...
१२८०
१२८१
१२८२
१२८३
....
१२६५
१२६६
१२६७
१३४४
१७२८
२३०४
३४५६
प्रथम वर्गमूल
१२
भागहार
ध्रुवस्थिति
ध्रु० स्थि० का आधा
तीसरा भा०
55
....
१४४, पल्य
१२, पल्यका प्र. व. मू.
....
६, ज० परीता सं०
૮૪૩
उत्कृ० संख्यात
939 १४५
६
२
परीता संख्यात
६
२ गुणकार
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वृद्धि
असंख्यात भा० पृ०
55
95
33
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अवक्तव्य भा० वृ०
33
33 404
57
संख्यात भा० वृ०
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33
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११५२
११५२०
१०
९ २२६. अथवा पल्य और ध्रुवस्थिति इन दोनोंको लेकर शास्त्र में अनिपुण शिष्यों के सम्बोधन करनेके लिये पल्यकी संख्यातभागवृद्धि के होनेपर ध्रुवस्थितिकी संख्यातभागवृद्धि होती
१. ता. प्रतौ ढोएडूण इति पाठः ।
संख्या० गु० वृ०
22
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