Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिभुजगारअंतरं
४५ . ७९. आदेसेण णेरइएसु मिच्छत्त० बारसक०-णवणोक० भुज०अवट्ठि ज० एगसमओ, उक्क० तेत्तीससागरोवमाणि देसूणाणि । अप्प० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०। अणंतागु०चउक्क० एवं चेव । णवरि अप्पदर० जह• एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । अवत्तव्व. ज. अंतोमु०, उक० तेत्तीससागरो० देसूणाणि । सम्मत्तसम्मामि० भुज० अवट्टि० ज० अंतोमु०, अप्प० ज० एगस०, अवत्तव्व० ज० पलिदो० असंखे भागो । उक्क० सव्वेसि तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि . एवं सव्वणेरइयाणं वत्तव्वं । णवरि सगसगहिदी देसूणा।।
८० तिरिक्ख० मिच्छत्त०-बारसक०-णवणोक० भुज-अवढि० ज० एगसमओ, उक्क पलिदो० असंखे०भागो। अप्पद० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अणंताणु०चउक० भुज०-अवढि० मिच्छत्तभंगो। अप्प० ज० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदो० देसूणाणि । अवत्तव्वं ओघं । सम्मत्त-सम्मामि० चदुण्डं पदाणमोघभंगो ।
5 ८१. पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिं०तिरि० पज०-पंचिं०तिरि०जोणिणीसु मिच्छत्तबारसक०-णवणोक० भुज० अवढि० ज० एगस०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । अप्प० ओघं । एवमणंताणु ०चउक्काणं । णवरि अप्प० ज० एगस०, उक० तिणि पलि० देसू.
७६. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कपाय और नो नोकपायोंकी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अनन्तानुबन्धी चतुष्कका इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। तथा अवक्तव्य स्थिति विभक्तिका जघन्य अन्तर अन्तर्महूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर अन्तर्महूर्त, अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा सभी स्थितिविभक्तियोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। इसी प्रकार सब नारकियोंके कहना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि कुछ कम तेतीस सागरके स्थानमें कुछ कम अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिये।
6८०. तियचोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिका भंग मिथ्यात्वके समान है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। तथा अवक्तव्य स्थितिविभक्तिका अन्तर अोधके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके चारों पदोंका भंग ओघके समान है। .
८१. पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिथंच योनिमती जीवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका अन्तर ओघके समान है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है
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