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गा० २२]
हिदिविहत्तीए उन्तरयटिअप्पाबहुअं संखेज्जगुणं कालं द्विदिसंतादो हेट्ठा भुजगार-अप्पदर-अवविदसरूवेण द्विदीओ बंधमाणो अधट्ठिदिगलणाए संतकम्मस्स अप्पदरं कादण पुणो तस्स अवद्विदं करेदि ति भणिदं होदि। काले संखेज्जगुणे संते जीवा वि संखेज्जगुणा चेव; अवट्ठिद-अप्पदरभावं समयं पडि पडिवज्जमाणजीवाणं समाणत्तादो। अप्पदरावट्ठिदाणि सव्वकालमत्थि ति अर्णतः कालसंचओ किण्ण घेप्पदे १ ण, अप्पदरमवद्विदं च पडिवण्णेगजीवो जाव अणप्पिदपदं ण गच्छदि तावदियमेत्तकालम्मि चेव संचयस्सुवलंभादो। ण च एगजीवो उकस्सेण अंतोमुहुतं मोत्तण अणंतकालमप्पदरमवाद्विदं वा कुणमाणो अत्थि; एगडिदिपरिणामाणमाणंतियप्पसंगादो । एगहिदीए डिदिबंधज्झवसाणट्ठाणमेत्तो अवडिदाढदिबंधकालो किण्ण होदि ? ण, एगस्स जीवस्स एगहिदीए द्विदिवंधज्झवसाणहाणेसु परिणमणकालो जहण्णेण एगसमयमेत्तो, उक्कस्सेण अंतोमुत्तमेत्तो चेवे त्ति परमगुरूवएसादो।
* एवं पारसकसाय-णवणोकसायाणं ।
६ १८१. जहा मिच्छत्तस्स अप्पाबहुअं परूविदं तहा बारसकसाय-णवणोकसायाणं परूवेदव्वं विसेसाभावादो ।
* सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा अवहिदहिदिविहत्तिया ।
एक स्थितिका जितना सर्वोत्कृष्ट बन्धकाल है उससे संख्यातगुणे कालतक स्थितिसत्त्वसे नीचे भुजगार, अल्पतर और अवस्थितरूपसे स्थितियोंका बन्ध करता हुआ यह जीव अधःस्थिति. गलनाके द्वारा सत्कर्मको अल्पतर करके पुनः उसे अवस्थित करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। जब कि काल संख्यातगुणा है तो जीव भी संख्यातगुणे ही होते हैं, क्योंकि अवस्थित और अल्पतर भावको प्रत्येक समयमें प्राप्त होनेवाले जीव समान है।
शंका-अल्पतर और अवस्थितविभक्तियाँ सर्वदा पाई जाती हैं, अतः यहाँ अनन्तकालमें होनेवाला संचय क्यों नहीं लिया जाता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि अल्पतर और अवस्थितपदको प्राप्त हुआ एक जीव जबतक अविवक्षित पदको नहीं प्राप्त होता है उतने काल में होनेवाले संचयका ही यहाँ महण किया है। और एक जीव उत्कृष्टरूपसे अन्तर्मुहूर्त कालको छोड़कर अनन्तकाल तक अल्पतर और अवस्थितपदको करता हुआ नहीं पाया जाता, अन्यथा एक स्थितिके परिणाम अनन्त हो जायंगे।
शंका-एक स्थितिके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंका जितना प्रमाण है अवस्थित स्थितिबन्धकाल उतना क्यों नहीं होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि एक जीवके एक स्थितिके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंमें परिणमन करनेका जघन्यकाल एक समयमात्र और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है, ऐसा परमगुरुका
उपदेश है।
* इसी प्रकार बारह कषाय और नौ नोकषायों का अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
६१८१. जिस प्रकार मिथ्यात्वका अल्पबहुत्व कहा है उसी प्रकार बारह कषाय और नौ नोकषायोंका कहना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं।
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