Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[द्विदिविहत्ती ३ ..$ १८२. कुदो, समउत्तरमिच्छत्तहिदिसंतकम्मेणेव सम्मत्तं पडिवज्जमाणाणमवट्ठिदद्विदिविहत्तिसंभवादो । सम्मत्तहिदिसंतादो समयुत्तरमिच्छत्तहिदिसंतकम्मेण सम्मत्तं पडिवज्जमाणा सुट्ट थोवा । तं कुदो णव्वदे १ सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तभुजगार-अवत्तव्व हिदिविहत्तियाणमुक्कस्संतरं चउवीस अहोरत्ते सादिरेगे त्ति परूविय तेसिमवट्टियस्स अंगलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तंतरपरूवणादो।
* भुजगारहिदिविहत्तिया असंखेज्जगुणा।
१८३. को गणगारो ? आवलियाए असंखे०भागो। कुदो, सम्मत्तगद्विदीए णिरुद्धाए तत्तो समयुत्तरमिच्छत्तद्विदिसंतकम्मेणेव सम्मत्तं पडिवज्जमाणाणमवद्विदहिदिविहत्ती होदि । दुसमयुत्तरादिसेसासेसहिदिवियप्पेहि सम्मत्तं पडिवज्जमाणाणं भुजगारो चेव होदि । एवं सव्वसम्मत्तद्विदीओ अस्सिदृण भुजगार-अवहिदाणं विसयपरूवणाए कीरमाणाए भुजगारविसओ चेव बहुओ। किं च मिच्छत्तधुवहिदीदो हेट्ठा दुसययूणादिसम्मत्तहिदिसंतकम्मेण सम्मत्तं पडिवज्जमाणाणं भुजगारविहत्ती चेव । तेण अवडिदविहत्तिएहिंतो भुजगारविहत्तिया असंखेज्जगुणा।
* अवत्तव्वहिदिविहत्तिया असंखेज्जगुणा । $ १८४. कुदो ? सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं संतकम्मेहि सह सम्मत्तं पडिवजमाण
8 १८२. क्योंकि मिथ्यात्वकी एक समय अधिक स्थितिसत्कर्मके साथ सम्यग्दर्शनको प्राप्त होनेवाले जीवोंके ही सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित स्थितिविभक्ति संभव है।
- शंका-सम्यक्त्वकी स्थितिसत्त्वसे मिथ्यात्वकी एक समय अधिक स्थितिसत्कर्मके साथ सम्यग्दर्शनको प्राप्त होनेवाले जीव सबसे थोड़े हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक चौबीस दिनरात है यह कहकर उन्हीं दोनों प्रकृतियोंकी अवस्थित स्थितिविभक्तिका अन्तरकाल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है इससे जाना जाता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं।
* भुजगार स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगणे हैं।
६१८३. गुणकार क्या है ? आवलिका असंख्यातवाँ भाग गुणकार है; क्योंकि सम्यक्त्वकी एक स्थितिके रहते हुए उससे मिथ्यात्वकी एक समय अधिक स्थितिसत्कर्मके साथ ही सम्यग्दर्शनको प्राप्त होनेवाले जीवोंके अवस्थित स्थितिविभक्ति होती है। तथा दो समय अधिक आदि शेष सम्पर्ण स्थितिविकल्पोंके साथ सम्यग्दर्शनको प्राप्त होनेवाले जीवोंके भुजगार स्थितिविभक्ति ही होती है । इस प्रकार सम्यक्त्वकी सब स्थितियोंके आश्रयसे भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तियोंके विषयकी प्ररूपणा करने पर भुजगारका विषय ही बहुत प्राप्त होता है । दूसरे मिथ्यात्वकी ध्वस्थितिके नीचे सम्यक्त्वकी दो समय कम आदि स्थितिसत्कर्मके साथ सम्यग्दर्शनको प्राप्त होनेवाले जीवोंके भुजगार स्थितिविभक्ति ही होती है। अतः अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंसे भुजगार स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं।
., 8 अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। ६१८४ क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व सत्कर्मके साथ सम्यग्दर्शनको प्राप्त होनेवाले
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