Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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५६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती ३ केव० १ असंखेजा भागा । सेस० असंखे भागो। एवं तिरिक्ख-कायजोगि-ओरालिय०णवूप०-चत्तारिक० असंजद०-अचक्खु०-तिण्णिले०-भवसि०-पाहारि त्ति ।
१०५. आदेसेण णेरइएसु एवं चेव । णवरि अणंताणु० चउक्क० अवत्तव्वमसंखे०. भागो। एवं सत्तसु पुढवीसु पंचिंदियतिरिक्खतिय०-देव०-भवणादि जाव सहस्सार०. पंचिदिय-पंचिं०पज्ज-तस-तसपज्ज०-पंचमण०-पंचवचि०-वेउवि०-इत्थि०-पुरिस०चक्खु०-तेउ०-पम्म०-सण्णि त्ति ।
$१०६. पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० छव्वीसं पयडीणमेवं चेव । णवरि अणंताणु०चउक्क० अवत्तव्व० णत्थि। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं णत्थि भागाभागं; एगप्पदरपदत्तादो । एवं मणुसअपज्ज-सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचकाय-तसअपज०. ओरालियमिस्स०-वेउवि०मिस्स-कम्मइय-मदि-सुद०-विहंग०-मिच्छादिहि-असण्णिअणाहारि त्ति।
१०७. मणुस० णिरओघं । मणुसपन्ज-मणुसिणी० एवं चेव । णवरि जम्हि असंखे०भागो तम्हि संखे०भागो कायव्वो।
१०८. आणदादि जाव उवरिमगेवजो त्ति अणंताणु०चउक्क० अप्प० सव्वजी. के० ? असंखेजा भागा। अवत्तव्य. असंखे०भागो। सम्मत्त-सम्मामि० ओघं । सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। तथा शेष पदवाले असंख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार तियंच, काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णादि तीन लेश्यावाले, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए।
8 १०५. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले असंख्यातवें भाग हैं। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तियेच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तियेच योनिमती, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार स्वर्गतकके देव, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, बस पर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, स्त्रीवेदवाले, पुरुषवेदवाले, चक्षुदर्शनवाले पीतलेश्यावाले. पद्मलेश्यावाले, और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिए।
६१०६. पंचेन्द्रियतिथेचअपर्याप्तकोंमें छब्बीस प्रकृतियों की अपेक्षा इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके अनन्तानुबन्धी चतुष्कका अवक्तव्यपद नहीं है । तथा सम्यक्त्व
और सम्यग्मिथ्यात्वका भागाभाग नहीं है, क्योंकि यहाँ इन दोनों प्रकृतियोंका एक अल्पतरपद है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, सब पाँचों स्थावर काय त्रस अपर्याप्त, औदारिकमिश्रकाययोगी वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, मिथ्या दृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए।
६ १०७. सामान्य मनुष्यों में सामान्य नारकियोंके समान जानना चाहिए । मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि जहाँ असंख्यातवाँ भाग कहा है वहाँ संख्यातवाँ भाग कर लेना चाहिये।
६ १०३. आनत कल्पसे लेकर उपरिम ग्रैवेयक तकके देवोंमें अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। तथा अवक्तव्य
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