Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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पूस
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती ३ सम्मत्त-सम्मामि० भुज०-अवट्ठि०-अवत्तव्व० केत्ति ? संखेज्जा। सेसपयडीणं सव्वपदा० अणंताणु० भुज०-अप्प०-अवढि० सम्म०-सम्मामि० अप्प० के० ? असंखेज्जा ।
$ १११. मणुसपज्ज०-मणुसिणी० सव्वपयडी० सव्वपदा० के० ? संखेज्जा । एवं सबढ०-आहार-आहारमिस्स०-अवगद० अकसा०- मणपज्ज०-संजद० - सामाइय-छेदो०. परिहार०-सुहुम०-जहाक्खादसंजदे ति।
६ ११२. आणदादि जाव उपरिमगेवज्जो ति सव्यपयडीणं सवपदा० के० ? असंखेज्जा । एवं सुकले० । अणुदिसादि जाव अवराइद त्ति सव्वपयडि. अप्पदर० के• ? असंखेज्जा। एवमाभिणि सुद०-ओहि०-संजदासंजद०-ओहिदंस०-सम्मादि०खइय०-वेदय०-उवसम०-सासण-सम्पामिच्छादिट्टि त्ति ।
११३. एइंदिरासु मिच्छत्त०-सोलसक०-णवणोक० सव्वपदा० के० ? अणंता। सम्मत्त-सम्मामि० अप्पदर० के० १ असंखेज्जा। एवं सव्वएइंदिय-वणफदि०-बादरसुहमपज्जत्तापज्जत्त-णिगोद०- बादर-सुहम-पज्जत्तापज्जत्त - ओरालियमिस्स - कम्मइयमदि-सुद०-मिच्छादि०-असण्णि-अणाहारि त्ति । विगलिंदियाणं पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो। एवं पंचिं०अपज्ज०-चत्तारिकाय-तस अपज्ज०-वेउब्वियमिस्स-विहंगस्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। तथा शे। प्रकृतियों के सब पदवाले अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं।
६ १११. मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसीप्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव, आहारककाययोगी, अाहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, अकषायवाले, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहार. विशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिए।
११२. आनतकल्पसे लेकर उपरिमौवेयकतकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें जानना चाहिए। अनुदिशसे लेकर अपराजिततकके देवोंमें स । प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्ति वाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसीप्रकार आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए।
६११३. एकेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके सब पदवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक, उनके बादर और सूक्ष्म तथा पर्याप्त और अपर्याप्त, निगोद, उनके बादर और सूक्ष्म तथा पर्याप्त और अपर्याप्त, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, ताज्ञानी, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना। विकलेन्द्रियों के पंचेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान भंग है। इसीप्रकार पंचेन्द्रिय अपर्याप्त. पृथिवी आदि चार स्थावरकाय, त्रय अपर्याप्त, बैक्रियिकमिश्रकाययोगी और विभंगज्ञानी जीवों के
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