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गा० २२]
द्विदिविहत्तीए उत्तरपडिभुजगारसण्णियासो १६७. सम्मत्तस्स जो भुजगारविहत्तिओ सो · मिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसायाणं णियमा अप्पदरविहत्तिओ। सम्मामिच्छत्तस्स णियमा भुजगारविहत्तिओ । एवं जिस मिथ्यादृष्टिने सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वी उद्वेलना कर दी है उसके मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिके रहते हुए इन दोनोंका सत्त्व नहीं होता। और जिसने उद्वेलना नहीं की है उसके सत्त्व होता है। किन्तु मिथ्यात्व गुणस्थानमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी एक अल्पतर स्थिति ही होती है, क्योंकि इन दोनों प्रकृतियोंकी शेष स्थितियाँ सम्यक्त्वको प्राप्त करनेके प्रथम समयमें ही होती हैं । इसलिये सिद्ध हुआ कि मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिके समय सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका यदि सत्त्व है तो एक अल्पतर स्थिति होती है। अव रहे सोलह कषाय और नौ नोकषाय सो मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिके समय इनकी भुजगार,अल्पतर और अवस्थित ये तीनों स्थितियाँ सम्भव हैं क्योंकि किसी एक कर्मका जितना स्थितिबन्ध होता है तदन्य कर्मका आबाधाकाण्डकके भीतर न्यूनाधिक रूपसे बन्ध होता रहता है। इसलिये मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिके समय सोलह कषाय
और नौ नोकषायोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित ये तीनों पद सम्भव हैं। इस प्रकार मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिकी अपेक्षा सन्निकर्षका विचार किया। मिथ्यात्वकी अवस्थित स्थितिको मुख्य मानकर भी सन्निकर्ष पहलेके समान ही प्राप्त होता है इसलिये उसका अलगसे निर्देश नहीं करते हैं । अब रही मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिको मुख्य मानकर विचार करनेकी बात सो इसके रहते हुए सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अस्तित्व है और नहीं भी है। जिसने उद्वेलना कर दी है उसके नहीं है शेषके है । पर ऐसे जीवके मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिके रहते हुए सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर भुजगार अवस्थित और अवक्तव्य ये चारों स्थितियाँ सम्भव हैं। इनमें से भुजगार अवस्थित और अवक्तव्य तो सम्यक्त्वको प्राप्त होनेके प्रथम समयमें ही होते हैं। अल्पतर पद सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्ट किसीके भी होता है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित ये तीनों पद होते हैं, क्योंकि मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिके समय उक्त प्रकृतियोंके तीन पद होने में कोई बाधा नहीं आती। तथा अनन्तानुबन्यी चतुष्क है भी और नहीं भी है। जिसने विसंयोजना कर दी है उसके नहीं है शेषके है। यदि है तो इसके भुजगार प्रादि चारों पद सम्भव हैं । कारण स्पष्ट है ।
उक्त विशेषताओंका ज्ञापक कोष्ठक
मिथ्यात्व
सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्व
भुजगार ( में ) | अवस्थित (में) | अल्पतर ( में ) नहीं भी हैं। । नहीं भी हैं
नहीं भी हैं यदि हैं यदि हैं तो अल्प- | यदि हैं तो अल्प
तो चारों पद तर पद
तर पद भुजगार, अल्तर | भुजगार, अल्पतर | नहीं है यदि है व अवस्थित व अवस्थित ___ तो चारों पद
अनन्तानुबन्धी
१२ कषाय और
ह कषाय
भुजगार, अल्पतर | भुजगार, अल्पतर | भुजगार, अल्पतर । व अवस्थित I व अवस्थित । व अवस्थित
६१६७. जो सम्यक्त्वकी भुजगार स्थितिविभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियमसे अल्पतरस्थितिविभक्तिवाला है। तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी नियमसे भुजगार
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