Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिभुजगारसणियासो
१६६. आदे० णेरइय० एवं चेव । णवरि सम्मामि० अप्प० विह० मिच्छ. णिय० अस्थि । एवं पढमाए। विदियादि जाव सत्तमा त्ति एवं चेव । णवरि सम्म अप्प० मिच्छ०-सम्मामि० णिय० अस्थि । बारसक०-णवणोक० अप्प० मिच्छ० णिय० अत्थि । तिरिक्ख०-पंचिंतिरिक्खतिय-देवा भवणादि जाव सहस्सार त्ति णारयमंगो। णवरि जोणिणि-भवण-वाण०वेंतर-जोदिसियाणं विदियपुढविभंगो। मणुसतियसन्निकर्षको घटित कर लेना चाहिये जो मूलमें बतलाया ही है। यहाँ केवल उन विशेषताओंका ज्ञापक कोष्ठक दिया जाता है
___ अब अनन्तानुवन्धी कषायको मुख्य मानकर सन्निकर्षका कोष्टक देते हैंअनन्तानुबन्धी
भुजगार अवस्थित
अल्पतर
अवक्तव्य
क्रोध
अनन्तानुबन्धी । भुजगार, अवस्थित
अल्पतर
अवक्तव्य मानआदि अल्पतर और अव. भुज० और अल्प.
भुज० और अव० १२ कषाय नौ नोक. भुज० अल्प० । भुज० अल्प०
भुज० अल्प और
अल्पतर और मिथ्यात्व और अव० । और अव०
अवस्थित नहीं हैं यदि हैं। नहीं हैं यदि हैं
नहीं हैं यदि हैं तो सम्यक्त्वसम्यग्मि.
अल्पतर - तो अल्पतर तो अवस्थित
भुज० अल्प० अव० अब १२ कषाय और हनोकषायोंको मुख्य मानकर सन्निकर्षका कोष्ठक देते हैं--
१२ कषाय और
नोकषाय
भुजगार
अल्पतर
अवस्थित
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नहीं है यदि है तो अनन्तानुबन्धी भुज० अल्प० अव० भुज० अल्प अव० भुज० अल्प० अव०
प्रवक्तव्य मिथ्यात्व
नहीं है यदि है तो भुज० अला. अव०
भुज० अल्प० अव०
भुज० अल्प० अव० ० सम्यक्त्व, सम्य- नहीं हैं यदि हैं तो नहीं हैं यदि हैं तो नहीं हैं यदि हैं तो म्मिथ्यात्व
अल्पतरभुज० अल्प० अव० अल्पतर
६१६६. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व नियमसे है। इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक भी इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व नियमसे हैं। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व नियमसे है। तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तियचत्रिक, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्त्रार स्वर्ग तकके देवोंके
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