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गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिभुजगारसण्णियासों
६१ ताणं भुजगार०-अवढि०-अवत्तव्व० णत्थि । अप्पदरमेकं चैव अस्थि । अणंताणु०चउक्क० अवत्तव्वं णत्थि। एवं मणुसअपज०-सव्वेइंदिय-सव्वविगलिंदिय-पंचिं०अपज०-सव्वपंचकाय-तसअपज०-ओरालिमिस्स-वेउव्वियमिस्स-कम्मइय० मदि०-सुद०-विहंग०. मिच्छादि०-असण्णि०-अणाहारि त्ति । णवरि ओरालियमिस्स-वेउव्वियमिस्स० कम्मइय०-अणाहारीसु विसेसो जाणियव्यो ।
६१७१. आणदादि जाव णवगेवजो त्ति मिच्छत्तस्स जो अप्पदरविहत्तिओ सो बारसकसाय-णवणोकसायाणं णियमा अप्पदरविहत्तिओ। अणंताणु०चउक्क० सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अस्थि सिया अप्पदरविहत्तिओ सिया अवत्तव्वविहत्तिओ। सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणि सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अस्थि सिया भुजगार० सिया अप्पदर० सिया अवत्तव्य० [सिया अवविद] विहत्तिओ । एवं बारसकसायाणवणोकसायाणं। मिच्छ०सम्म० सम्मामि०-अणंताणु० चउक्क० सिया अस्थि । इतनी विशेषता है कि इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्य ये तीन पद नहीं हैं। केवल एक अल्पतर पद हैं। तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्कका प्रवक्तव्य पद नहीं है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तक, सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक, सब पाँचों स्थावरकाय, त्रस अपर्याप्त, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, ताज्ञानी, विभंगज्ञानी, मिथ्याष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना । किन्तु इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें विशेष जानना चाहिये।
विशेषार्थ-पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च अपर्याप्तकोंके सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति नहीं होती इसलिये इनके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्य ये तीन पद सम्भव नहीं किन्तु एक अल्पतर पद ही होता है। और इसीलिये इनके अनन्तानुवन्धीका अवक्तव्यपद नहीं होता। शेष कथन योनिमती तिर्यश्चोंके समान है यह स्पष्ट ही है । मनुष्य लब्धपर्याप्तक आदि कुछ और मार्गणाएँ हैं जिनमें यह अवस्था बन जाती है, अतः इनके कथन को पञ्चेन्द्रियतियश्च लब्ध्यपर्याप्तकों के समान बतलाया है। किन्तु औदारिकमिश्रकाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग, कार्मणकाययोग और अनाहारक अवस्थामें विशेषके जाननेकी सूचना की है सो इसका इतना ही मतलब है कि इन मार्गणाओंमें कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि जीव भी उत्पन्न होते हैं, अतः इनमें पहली पृथिवीके समान भंग बन जाता है।
६१७१. आनतसे लेकर नौ ग्रैवेयकतकके देवोंमें जो मिथ्यात्वकी अल्पतरस्थितिविभक्तिवाला है वह बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियमसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला है। इसके अनन्तानुबन्धी चतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उसकी अपेक्षा यह कदाचित् अल्पतरविभक्तिवाला और कदाचित् अवक्तव्यस्थितिभक्तिवाला होता है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो इनकी अपेक्षा कदाचित् भुजगार स्थितिविभक्तिवाला, कदाचित् अल्पतर स्थितिविभक्तिवाला कदाचित् अवक्तव्य और कदाचित् अवस्थित स्थितिविभक्तिवाला होता है। इसी प्रकार बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षामें सन्निकर्ष जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धा चतुष्क कदाचित् हैं।
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