Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
ट्ठिदिविहत्तीए उत्तरपयडिभुजगारकालो $ १४१. आहार० सव्वपयडी० अप्पद० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवमवगद.. अकसा०-सुहुम०-जहाक्खादे त्ति । आहारमिस्स० सवपयडी० अप्पद० जहण्णुक० अंतोमु० । वेउव्वियमिस्स० मणुसअपज्जत्तभंगो । अभव छव्वीसपयडी० मदि०भंगो ।
$ १४२. उवसम० सव्वपयडो० अप्पद० ज० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० असंखे०. भागो । एवं सम्मामिच्छाइद्विस्स वि । सासण० सव्वपयडी० अप्पद० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । कम्मइय०-अणाहारि० ओरालियमिस्स०-भंगो। णवरि सम्मत्त-सम्मामि० अप्पद० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो।
____ एवं कालाणुगमो समत्तो।
पद ही होता है और यहाँ उनका सदा सद्भाव पाया जाता है अतः यहाँ अल्पतर पदका सर्वदा काल कहा है। आगे बादर एकेन्द्रिय आदि जो बहुत सी मार्गणाएँ गिनाई हैं उनमें यह व्यवस्था बन जाती है, अतः उनके कालको एकेन्द्रियोंके समान कहा है।
६१४१. आहारककाययोगियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतरस्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार अपगतवेदी, अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिए। आहारकमिश्रकाययोगियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पनर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। वैक्रियिकमिनकाययोगियोंमें मनुष्य अपर्याप्तकोंके समान भंग है। अभव्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा मत्यज्ञानियोंके समान भंग है।
विशेषार्थ-आहारककाययोगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा इसमें सब प्रकृतियोंका एक अल्पतर पद ही होता है। यही कारण है कि यहाँ सब प्रकृतियोंके अल्पतर पदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्महर्त बतलाया है। इसी प्रकार अपगतवेद आदि मार्गणाओंमें भी समझना चाहिये। किन्तु आहारकमिश्रका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही है, अतः यहाँ सब प्रकृतियोंके अल्पतर पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त बतलाया है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातधे भागप्रमाण है । लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका भी इतना ही काल है अतः वैक्रियिकमिश्रकाययोगका भंग लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंके समान बतलाया है। अभव्य मत्यज्ञानी ही होते हैं, अतः इनका भंग मत्यज्ञानियोंके समान बतलाया है ।
६१४२. उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि के भी जानना चाहिए। सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। कार्मणकाययोगी और अनाहारकोंमें औदारिकमिश्रकाययोगियोंके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
विशेषार्थ-उपशम सम्यग्दृष्टियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यात भागप्रमाण है अतः यहाँ सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिका काल उक्त प्रमाण बतलाया है। इसी प्रकार सम्यग्मिध्यादृष्टियोंके भी जानना चाहिये। किन्तु सासादन
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