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प्रथम अध्याय
जैनेतर परम्पराओं में अहिंसा
भारतीय संस्कृति में दो अन्तर्धाराएँ प्रवाहित होती हैं : वैदिक विचारधारा तथा श्रमण-विचारधारा, जिन्हें वैदिक संस्कृति एवं श्रमण-संस्कृति भी कहा जाता है। चूकि बैदिक संस्कृति में ब्राह्मण या पुरोहित अग्रणी समझे जाते हैं और इनके द्वारा निर्देशित कर्मकाण्ड-मार्ग का अन्य सनातनधर्मी अनुगमन करते हैं, इसे ब्राह्मण-संस्कृति के नाम से भी पुकारते हैं। वेद, उपनिषद् आदि इसके आधार-ग्रन्थ हैं । श्रमण-संस्कृति की दो उपधाराएं हैं-बौद्ध एवं जैन । बौद्ध संस्कृति के आधार-ग्रन्थ हैं पिटक आदि, तथा जैन संस्कृति आगमों पर आधारित है। वैदिक संस्कृति प्रवृत्तिपरक जीवन से प्रारम्भ होकर निवृत्तिपरक जीवन की ओर बढ़ती है किन्तु श्रमण-संस्कृति शुरू से ही निवृत्तिपरक है। वैदिक परम्परा :
वैदिक परम्परा का श्रीगणेश वेदों से होता है। हिन्दू धार्मिक मान्यता के आधार पर वेद उन ईश्वरीय पवित्र प्रवचनों के संकलन हैं, जो अकाट्य और अमिट हैं । ऐतिहासिकता के आधार पर ये समूचे संसार की मानवकृत रचनाओं में सबसे प्राचीन हैं। प्राचीनता एवं ज्ञान-बाहुल्य के कारण वेदों की गणना संसार की उच्चतम कोटि की रचनाओं में होती है। वैदिक संस्कृति, साहित्य, धर्म एवं दर्शन के तो ये प्राण हैं । वेद चार हैं-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। इनमें से प्रत्येक के चार विभाग हैं-संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद् । इनके अलावा स्मृति, सूत्र, रामायण, महाभारत, गीता, पुराण आदि वैदिक-परम्परा के प्रमुख ग्रन्थ हैं।
ऋग्वेद का समय राधाकुमुद मुकर्जी ने वही माना है जो सिन्धुसभ्यता का माना गया है। ऋग्वेदकालीन भारतीय संस्कृति एवं
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