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संविग्न गीतार्थ की आचरणा पर
तब उनको समझाने के लिये गुरु उसे वहां भेजने लगे। अब वे उसे स्निग्ध व चिकना आहार देते और वह लेता था।
पश्चात् वह खाकर पूर्वो को स्मरण करता जिससे वह वैसा ही बना रहा । तब वे उसे उससे भो बलिष्ठ भोजन देने लगे तथापि यह तो कृश ही रहा तब वे देते देते थक गये, तो गुरु ने कहा कि-हे पुष्यमित्र ! आज से कृश मत हो और थोड़े दिन अंतप्रान्त (हलका) भोजन करता रह ।
वैसा ही करते उसका शरीर बलवान् और तेजस्वी होने लगा और थोड़े ही दिनों में उसके गाल व कपोल रक्त से भर गये।
यह महान् आश्चर्य देख कर प्रतिबोध पा, बुद्धधर्म छोड़कर उन्होंने रक्षित-स्वामी से गृहस्थ-धर्म अंगीकृत किया। ___ उस गच्छ में दुर्बलिका पुष्यमित्र, विध्य, फल्गुरक्षित और गोष्ठामाहिल ये चार जन प्रधान (प्रसिद्ध) थे। वहां विंध्याचल के समान स्व समय के सूत्रार्थ रूप हाथियों का आधार रूप विध्य एक समय आचार्य को भक्ति पूर्वक इस प्रकार विनन्ती करने लगा।
हे प्रभु! सूत्र मंडली में तो मुझे अनुक्रमानुसार दीर्घकाल में लाभ मिलता है । अतएव मुझे पृथक् वाचनाचार्य दीजिए। तब गुरु ने उसे पुष्यमित्र वाचनाचार्य दिया । ____अब वह कितनेक दिन वाचना देकर गुरु को कहने लगा किहे प्रभु ! वाचना देते और सम्बन्धियों के घर रहते मैं अनुप्रक्षा नहीं कर सकता, जिससे मैं पांच वस्तुएं भूल गया हूँ और अब ऐसा न हो कि नवमा पूर्व भी भूल जाऊं। यह सुनकर गुरु सोचने