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आचार्य के छत्तीस गुण
और तर्क कर सकता है । गंभीर होने से उसका मर्म नहीं जाना जा सकता। दीतिमान होने से सन्मुख कोई ठहर नहीं सकता। शिव का हेतु होने से शिव माना जाता है, क्योंकि- उसके आंधष्ठित देश में महामारी आदि दब जाती है । सौम्य होने से सब के मन व आंखों को रमणीय लगता है। ____ इस प्रकार सैकड़ों गुणों अर्थात् (प्रेम) आदि अनेक गुणों से जो युक्त होता है, वह प्रवचन का सार कहने को अर्थात् प्रवचन का अनुयोग करने को योग्य होता है।
___ अथवा छत्तीस गुण इस प्रकार हैं:आठ प्रकार की गणिसंपत् उसको चौगुनी करने से बत्तीस होते हैं । उसमें चार प्रकार का विनय जोड़ते उसके छत्तीस गुण होते हैं। ___गण जिसको हो, वह गणि अर्थात् आचार्य, उसकी संपत् अर्थात् समृद्धि, वह आठ प्रकार की है:-आचार, श्र त, शरीर, वचन, वाचना, मति, प्रयोगमति, इन सात विषयों में संपत् और आठवीं संग्रहपरिज्ञा है, इस भांति आचार, श्रत, शरीर, वचन, . वाचना. मति, प्रयोगमति और संग्रहपरिज्ञा, इन भेदों से आठ प्रकार की संपत् है । उसको चार से गुणा करने से बत्तीस गुण होते हैं । वहाँ आचार याने अनुपान तद्र प संपत् चार प्रकार की है:-संयमधू व-योगमुक्तता अर्थात् चारित्र में नित्य समाधि के साथ उपयोग । असंप्रग्रह अर्थात् अपनी जाति आदि के गर्व रूप आग्रह का वर्जन करना । अनियतवृत्ति अर्थात् अनियत विहार और वृद्धशीलता अर्थात् शरीर और मन को निर्विकारिता। ___ इस भाँति श्रु तसंपत् चार प्रकार की है:-बहुश्रु तता अर्थात् उस युग में सब से प्रधान आगम का ज्ञान । परिचित सूत्रता