Book Title: Dharmratna Prakaran Part 03
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 169
________________ १६२ धर्मरत्न की योग्यता पर गतवीर्य और गतशस्त्र कर दिया । तब बड़े हाथियों से मारा हुआ हाथी का बच्चा जैसे भागता है, वैसे श्रीप्रभराजा से पराभव पाया हुआ, अरिदमन पीछे देखता हुआ भागने लगा। ___ अब उसके रथ, घोड़े, हाथी आदि सर्व लक्ष्मी श्रीप्रभराजा को मिली, क्योंकि-जिसका पराक्रम उसकी लक्ष्मी । भरे हुए बादलों के समान मालवपति रणसागर से निवृत्त होकर सब लोगों को राजी करता हुआ अपनी नगरी में आया । और त्रिवर्ग साधन के साथ वह इन्द्र के समान राज्यश्री भोगता हुआ काल व्यतीत करने लगा। एक समय वहां सुमुनियों सहित प्रभास नामक आचार्य पधारे तब उनको नमन करने के हेतु राजा बन्धु-परिवार युक्त निकला। राजा भूमि पर मस्तक लगा मुनीश्वर को नमन करके उचित स्थान पर बैठा, तो गुरु इस प्रकार देशना देने लगे। ____ इस संसार में कोई भी जीव अनन्तकाल तक भटक भटक कर महा कठिनता से मनुष्यत्व पाता है। उस पर भी धर्म कर्म करने को समर्थ शरीर बल और आयुष्य तो चिरकाल ही में मिलता है । उस पर भी गाढ़ मिथ्यात्व वश अति निर्मल विवेक खोकर, पाप वृद्धि कर, पुनः इस भव में अनन्तवार अनन्तों दुःखों की पीड़ा से विधुर हो यह संभ्रमी जीव भटका करता है। इस प्रकार भवसमुद्र में नीचे डूबता व ऊपर आता हुआ भाग्यवश पुनः मनुष्यत्वं पाकर हे भव्य लोको ! तुम मजबूत गुणगण से बांधी हुई नाव समान क्लेश को नाश करने वाली जैनदीक्षा को अंगीकार करो। • अति उत्कट करोड़ों सुभट तथा रथ, घोड़े, हाथियों के लश्कर वाले शत्रुओं को जो जीते, वैसे तो जगत् में सैकड़ों मनुष्य मिलते

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