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श्रीप्रभ महाराजा की कथा
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भी तुरन्त उसके सन्मुख तैयार हुआ, क्योंकि-शरवीर लड़ने के लिये आलसी नहीं होते हैं। जैसे कि-ब्राह्मण खाने के लिये
आलसी नहीं होते हैं। ___अब दोनों सेनाओं के अनेक शस्त्रधारी सुभटों का, आकाश में जैसे बिजली वाले बादलों का मिलाप होता है, वैसे मिलाप हुआ । अब मालवपति के अति अद्भुत भटवाद वाले सुभटों ने शत्रु के सैन्य को, मदोन्मत्त हाथी जिस प्रकार उद्यान को छिन्नभिन्न करते हैं उस प्रकार छिन्न भिन्न कर डाला । तब अरिदमन राजा रथ पर चढ़ कर अपने छिन्नभिन्न सैन्य को एकत्र करता हुआ धनुष पछाड़ता हुआ स्वयं लड़ने को उद्यत हुआ। ___ उसने उसी समय तीक्ष्ण बाणों का मेह बरसा कर समुद्र की बढ़ती हुई लहर पानी के द्वारा जैसे किनारे के पर्वत को पकड़ती है वसे रिपुसैन्य को धर लिया। क्षणभर में महान भुजबली अरिदमन ने लकड़ी जैसे घड़े की किनार को तोड़ डालती है अथवा पवन जैसे लाखों झाड़ों को तोड़ डालता है, वैसे सन्मुखस्थित शत्रु सेन्य को तोड़ डाला नष्ट कर दिया) तब अपने सैन्य का भंग होने से कुपित हुआ श्रीप्रभराजा यम के छोटे भाई के समान शत्रु-सैन्य का संहार करने को खड़ा हुआ। मालवपति के सन्मुख शत्रु-सैन्य गरुड़ के सन्मुख सप न टिके अथवा सिंह के सन्मुख हरिण न टिके, वैसे क्षण भर भी न टिक सका।
तब छिन्नभिन्न सैन्य वाले तथापि सन्मुख खड़े हुए अरिदमन राजा को श्रीकृष्ण समान बलवान मालवपति ने लड़ने को बुलाया । पश्चात् वे दोनों राजा अनेक शस्त्र और अस्त्र से एक दूसरे को मारने की मतिवाले जंगली हाथी जैसे दांतों से लड़ते हैं, वैसे लड़ने लगे। मालवपति. ने बहुत समय तक लड़कर अरिदमन को, गारुड़ी जैसे सर्प को निर्विष करता है, वैसे ही