________________
म्लेच्छ का दृष्टांत
००
आहारों से उसे खुशी किया। अब किसी समय वह पुलिंद अपनी जन्मभूमि का स्मरण करने लगा ।
१७६
यह जान कर राजा ने उसे विदा किया, तब वह अपने वन में गया और स्वजनों से मिला, तो उन्होंने पूछा कि तू कहां पहुँचा था ? वह बोला कि -एक राजा मुझे नगर में ले गया था, वे बोले कि नगर भला कैसा होगा ? पुलिंद बोला कि इस पल्ली के समान । वे बोले कि वहां तू कहां ठहरा था ? पुलिंद बोला कि- मणिमय महल में । वे बोले कि महल कैसा होगा ? पुलिंद बोला कि - झोंपड़े के समान । वे बोले कि तू ने क्या पहिरा ? पुलिंद बोला कि - रेशमी कपड़े । वे बोले कि वे कैसे थे ? उसने उत्तर दिया वल्कल के समान । वे बोले कि क्या खाया ? पुलिंद बोला कि - लड्डू (मोदक) वे बोले कि वे कैसे होते हैं ? पुलिंद ने उत्तर दिया कि पके हुए बिल के समान ।
इस भांति अटवी प्रसिद्ध दृष्टांतों से वह नगर से अपरिचित स्वजनों के सन्मुख नगर का स्वरूप वर्णन करने लगा। वैसे ही सिद्धिसुख को बराबर जानते केवलज्ञानी वैसी उपमा के अभाव से उसे नहीं कह सकते तथापि कुछ उपमाओं द्वारा मैं उसको कहता हूँ ।
जैसे कोई सकल आधि-व्याधि से रहित, मधुर आहार से तृप्त शरीर वाला, कला-कुशल, चतुर मित्रों से परिवरित तरुण पुरुष, कान को सुख देनेवाला किन्नरों से गाया हुआ सरस गान सुनता हुआ, और नाना हाव-भाव से रमणीय स्त्रियों का नृत्य देखता हुआ, तथा फूल, कस्तूरी कपूर और चंदन की सुगंधि से नाक को प्रसन्न करता हुआ, वैसे ही कपूर से भरे हुए उमदा तांबूल से मुख को सुवासित करता हुआ, और रेशमी वन से ढांके हुए बड़े पलंग पर बिछे हुए हंस - तूलिक (मुलायम