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वज्रस्वामी की कथा
तब आचार्य विचार करने लगे कि - यह बालक होते हुए भी विद्यावृद्ध है, इसलिये अन्य साधु अनजान रहकर उसकी अवज्ञा करें, वैसा न होना चाहिये । यह सोचकर उन्होंने रात्रि को शिष्यों से कहा कि- कल हमको अमुक गांव को जाना है और वहां दो-तीन दिन रहना पड़ेगा । तब योगप्रपन्न मुनि बोले कि - हमको वाचना कौन देगा ? आचार्य ने कहा कि- वज्र देगा ।
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उन मुनियों ने सरल और विनीत होने से सहज ही में यह बात मान ली। क्योंकि भद्र हाथी के समान सज्जन ( शिष्य ) गुरु की आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं करते ।
अब गुरु के रवाना होने पर प्रातःकाल अनुयोग की सामग्री कर, उन्होंने वर्ष को गुरु के समान भक्ति से निषद्या (आसन ) पर बैठाया। तब वत्र मुनि ज्ञान-रूप कंद की वृद्धि करने में मेघ समान होकर क्रमशः उन महर्षियों को आलापक देने लगे । तब जो मंद बुद्धि थे उनके प्रति भी वत्र की वाणी सफल होने लगी । यह नवीन आश्चर्य देखकर सकल गच्छ विस्मित हुआ ।
इस समय मुनि - गण पहिले सीखकर ठीक किये हुए आलापकों को संवाद देखने के हेतु पूछने लगे । तब वज्र ने उनकी उसी भांति व्याख्या करी तथा जो आचार्य से जितना अनेक वाचनाओं द्वारा पढ़े थे, वे वज्र मुनि से उतना एक ही वाचना में सीखने लगे ।
अब सधु हर्षित हो परस्पर कहने लगे कि- जो गुरु देर से आ तो वज्र से यह श्र तस्कंध शीघ्र समाप्त हो जावे तथा अपने
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को धन्य और कृत-कृत्य होना चाहिये तथा अपने पुण्य जागृत हुए हैं कि- अपन ने वज्र वाचनाचार्य प्राप्त किये हैं । इस पृथ्वी