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धर्मरत्न की योग्यता पर
बालों को यह राजा मूल से उखाड़ डालता है । (सामने देखो!) मणि और रत्नों से भरे हुए मुकुट तथा हार आदि ये आभरण इसने निर्माल्य के समान त्याग दिये हैं। (देखो !) पति का छोड़ दिया हुआ अंतःपुर दुःखी आवाज से झाड़ के अग्रभाग पर बैठे हुए पक्षी प्रचंड पवन के झपाटे से कंपित होकर चिल्लाते हैं, वैसे रोता है । ( देखो!) हे नाथ ! हे नाथ !! हम अशरणों को तू एकदम क्यों छोड़ जाता है ? इस भांति लुटे हुओं के समान . लोग विलाप करते हैं।
इस प्रकार नट-नायक ने भरताधिपति सनत्कुमार के निष्क्रमण का बनाव इस प्रकार दिखाया कि-जिससे श्रीचंद्र राजा भी तत्काल वैराग्य पाकर, पूर्वभव के श्रुत-संयम का स्मरण कर पंचमुष्ठि लोचकर देवों से साधु का वेष पाकर राजमंदिर से निकल पड़ा।
_ 'यह सब नट का विलसित है, इसलिये हे नाथ ! हम को अनाथ करके छोड़कर मत जाओ' इस प्रकार उसके परिवार के रोते हुए भी वह ऋषि अपनी इच्छानुसार विहार करने लगा। - अब पिता के वियोग से विह्वल तथा अश्र पूर्ण नयन वाले श्रीप्रभकुमार को इच्छा न होते भी विनय से नमे हुए सामंतों तथा मंत्रीश्वरों ने राज्य पर बैठाया तथा प्रभाचंद्र कुमार को युवराज पद पर स्थापित किया, और महान् शोक रूप शंकु निकालने में चतुर उन लोगों ने उनको वचनों से इस प्रकार कहा
हे देव ! आप अपने पिताजी का शोक मत करिये क्योंकिमहाभाग तो अंशोच्य ही हैं, जिन्होंने कि कपटी स्त्री की भांति