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धर्मरत्न की योग्यता पर
है, उसको मैं ने रोका है। राजा ने हुक्म दिया कि उसे शीघ्र अन्दर भेज, तब छड़ीदार उसे वहां लाया तो वह तोन पात्रों की किंगर (दो के ऊपर तीसरा खड़ा रहे वैसा दिखाव) करके इस प्रकार राजा को आशीष देने लगा।
छः खंडवाली पृथ्वी नव निधान, चौसठ हजार रत्नों को तृण समान छोड़कर, संसार के दुःख से घबरा कर जिसने जैन दीक्षा ग्रहण की वे सनत्कुमार राजर्षि, हे भूपाल ! आपको श्री संपदादायक हो ओ । अब नाटक देखने के कौतुक के रसमें अपने पुत्र आदि सर्व जनों को उसने स्पष्ट रीति से आतुर मन वाले देखे । तब उनकी अनुवृत्ति के वश उस चतुर राजा ने उक्त नटनायक की ओर सनत्कुमार का अभिनय करने के हेतु संकेत के साथ ही उज्वल दृष्टि फेरी।
तब राजा का अभिप्राय समझकर वह नट मनोहर वाणी से बोला कि-हे श्रीचन्द्रनरेश्वर आदि सभाजनों ! थोड़े समय तक एक चित्त होकर चतुर्थ चक्रवर्ती का चरित्र सुनो। यह कह कर वह नटनायक अपना अभिनय करने लगा। वह इस प्रकार है। __ श्री हस्तिनापुर के स्वामी, छः खंडवाले भरतक्षेत्र के अधिपति, महान् साम्राज्य भोगने वाले सनत्कुमार नरेश्वर की अत्युत्तम रूप लक्ष्मी देखने से अति विस्मय पाकर सौधर्मेन्द्र अपनी सभा में स्थित देवों को इस प्रकार कहने लगा।
हे देवों ! पूर्वोपार्जित शुभ निर्माण नामकर्म से बने हुए कांतियुक्त शरीराकारवाले सार्वभौम महाराजा सनत्कुमार की कैसी रूप रेखा है, वह देखो कि-जो इस देवलोक में जन्मे हुओं को भी प्रायः नहीं होगी।