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पांच प्रकार के निग्रंथ का स्वरूप
लब्धि और आसेवना से दो प्रकार का है। लब्धिपुलाक संघादि के कार्यार्थ चक्रवर्ती की सेना को भी चूर डालता है, और इंद्र के समान अधिक श्री (कांति) वान होता है । आसेवनापुलाक पांच प्रकार का है। ___दर्शनपुलाक दर्शन को शंका आदि से, और ज्ञानपुलाक ज्ञान को कालादिक से असार करता है । और चरणपुलाक मूल तथा उत्तरगुण की प्रतिसेवा करता है । लिंगपुलाक वह है कि-जो निष्कारण पराया लिंग स्वीकार करे और यथासूक्ष्मपुलाक वह है कि- जो किंचित् प्रमाद से मन से अकल्प का ग्रहण करता है ।
. उपकरणबकुश और शरीरवकुश. इस भांति बकुश दो प्रकार का है। उन दोनों के पुनः पांच प्रकार हैं:-आभोग अनाभोग, संवृत, असंवृत और सूक्ष्म । आसेवनाकुशील और कषायकुशील इस भांति कुशील के दो भेद हैं। उन दोनों के पुन: पांच प्रकार हैं:-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और यथासूक्ष्म । । यहां ज्ञानादिकुशील ज्ञान आदि से आजीविका करता है, और यथासूक्ष्म वह है जो ''यह तपस्वी है" ऐसी प्रशंसा से प्रसन्न होता है, सो जानो । उपशामक और क्षपक इस प्रकार निग्रंथ दो प्रकार का है। उन दोनों के पांच भेद हैं:-प्रथमसमय, अप्रथम, चरम, अचरम और यथासूक्ष्म ।
क्षपक उत्कृष्ट से एक सौ आठ होते हैं, और उपशामक चौपन होते हैं । जघन्य से एक, दो वा तीन होते हैं । शुभ-ध्यानरूप जल से कर्ममल को क्षय कर विशुद्ध हो, सो स्नातक । वह दो प्रकार का है:-सयोगी और अयोगी । कुशील मूल और उत्तर गुण इन दोनों की प्रतिसेवा-सेवन करता है। बकुश उत्तरगुण में प्रतिसेवा-सेवन करता है और शेष प्रतिसेवारहित है।