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स्खलित शुद्धि पर
देवलोक में सुवर्ण समान कांतिवान महान् देवता हुआ। वहां से च्यवन होने पर इस भरत में वैताढ्य में गगनवल्लभ नगर के कनककेतु राजा की देक्का नामक रानी के गर्भ से शिवचन्द्र नामक उनका मुख्य पुत्र हुआ । जब वह युवावस्था को पहुंचा तब उसने अनेक विद्याएँ सीखकर वसंतश्री नामक राजपुत्री से विवाह किया। तथा श्रीयक भी वहां से निकल कर उसी का छोटा भाई होकर उत्पन्न हुआ। उसका नाम सोमचन्द्र रखा गया। वह भी क्रमानुसार यौवनावस्था को प्राप्त हुआ।
अब निर्दोष और उत्तम विद्याएँ सीखकर तैयार हुए सोमचंद्र कुमार को एक समय मातंगी-विद्या साधने की इच्छा हुई ! उस विद्या का ऐसा कल्प है कि-मातंग की लड़की से विवाह करके. कुछ दिन मातंग के घर रहकर उसको साधनाविधि करना चाहिये। तब पिता तथा भाई के खूब मना करने तथा बारम्बार रोकने पर भी वह कुणाला नारी को ओर भाग गया । वहां बहुत सा धन देकर मातंग को लड़को से विवाह किया । पश्चात् विद्या साधने की बात को अलग छोड़, शुद्धबुद्धि खोकर तथा अपने कुल को कलंक लगने की परवाह न करके, पुण्य के प्रारभार से अत्यन्त रहित होकर उसीमें आसक्त हो गया, जिससे समयानुसार उसके लड़के-लड़की उत्पन्न हुए। इस प्रकार वह मलीन आचरण करता हुआ पाप में लयलीन हो गया। जिससे उसके पिता व भाई आदि ने उसकी बात करना भी छोड़ दिया।
अब एक समय शिवचन्द्र कुमार घोड़े, हाथी, रथ और योद्धाओं से परिवारित होकर विमानों से आकाश को चारों ओर से भरता हुआ, प्रवर विमान पर चढ़कर निकला। उसके मस्तक पर श्वेत छत्र धरा गया । आसपास में बैठी हुई विद्याधरियां उस