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अशक्य अनुष्ठान करने पर
___ भला, क्या धर्म करते हुए भी कोई असदारंभ होता है ? ___ उत्तर-हां, होता ही है, मतिमोह तथा अहंकार की बुद्धि के कारण ।
किस प्रकार और किसके समान ? ऐसी शंका के लिए जबाब कहते हैं
जो गुरुमवमन्नतो आरंभइ किर असक्कमवि किंचि । सिवभूइ व्व न एमो सम्मारंभो महामोहो ॥ ११९ ।।
मूल का अर्थ-जो कोई गुरु की अवज्ञा करके, जो अशक्य को भी करने लगे, वह शिवभूति के समान सम्यक् आरंभ वाला नहीं माना जाता क्योंकि-वैसा करना महामोह है।
टीका का अर्थ-जो कोई मंदमति गुरु को अर्थात् धर्माचार्य को हलका गिनता हुआ याने यह तो हीनाचारी है । इस प्रकार अवज्ञा से उनकी तरफ देखता हुआ काल और संघयण का अनुसरण नहीं करता और उसीसे गुरु के न कराते जिनकल्पादिक अशक्य काम को भी करने लगता है, न कि शक्य को। वह दिगम्बर शिवभूति के समान सम्यक् आरम्भवाला अर्थात् सत्प्रवृत्तिवाला नहीं माना जाता । कारण कि-ऐसा करना महामोह है। मतलब यह है कि-अकृतज्ञता और अज्ञान के जोर बिना कोई भी मनुष्य परम उपकारी गुरु की छाया से पृथक नहीं होता, यह गाथा का अक्षरार्थ है । भावार्थ कथानक से ज्ञात होगा।
शिवभूति की कथा इस प्रकार है— रथवीरपुर में सिंहरथ नामक राजा था। उसका साहसिक बलवान और माननीय शिवभूति नामक एक पदाति (पैदल सेना